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साथ संबंध रखना है यह वस्तु सिद्ध है । अर्थावग्रह से जिस अर्थ का ज्ञान होता मी अयं में पिछ ईहा' ज्ञान होता है।
अनन्तर काल का ज्ञान पूर्ववर्ती साधन से जिस वस्तु का ज्ञान होता है उसी वस्तु को लेकर उत्पन्न होता है
और पूर्ववर्ती ज्ञानात्मक होता है यह तत्त्व अर्थावग्रह और ईहा ज्ञान के स्वरूप को देखकर प्रतीत होता है । ईहा ज्ञान का पूर्ववर्ती अर्थावग्रह है और वह ज्ञानात्मक है। जिस वस्तु का संबंध व्यंजनावग्रह में होता है उसी वस्तु को लेकर व्यंजनावग्रह के पीछे अर्थावग्रह होता है इसलिये व्यंजनावग्रह भी ज्ञान है।
यह ज्ञान अव्यक्त है इसलिये इसकी प्रतीति नहीं होती। सोया हुआ मनुष्य स्वप्न की अवस्था में कभी अनेक प्रकार के वचन बोलता है, यदि कोई उसको बुलाता है तो उत्तर भी देता है । अंगों का सकोच और फैलाव आदि भी करता है
और अंगों में खाज आदि भी करने लगता है । इन समस्त क्रियाओं को वह निद्रा काल में स्पष्ट रीति से नहीं अनुभव करता। जागने के पीछे इन समस्त क्रियाओं का स्मरण भी उसको नहीं होता। बिना ज्ञान के ये चेष्टाए नहीं हो सकती, ज्ञान चेष्टाओं का कारण है । जिस प्रकार सोये मनुष्य का ज्ञान अव्यक्त है, इस प्रकार व्यंजनावग्रह के काल में जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह भी अव्यक्त है । अव्यक्त भाव के साथ ज्ञान का कोई विरोध नहीं है । तेज का स्वभाव प्रकाशात्मक है । विशाल परिमाण में तेज के अवयव दिखाई देते हैं परन्तु तेज का एक सूक्ष्म अवयव प्रकाशात्मक होने पर भी नहीं दिखाई देता। इसी प्रकार