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ऽपि चेष्टाविशेषाद्यनुमेयस्वप्नज्ञानादितुल्यायः क्तज्ञानानुमानावा एकतेजोऽवयववत् तस्य तनुत्वेनानुपलक्षणात् ।
अर्थ-यदि इन्द्रिय और शब्द आदि का संबंधात्मक व्यंजनावग्रह पर का वाच्य हो तो यह मुख्य रूप से ज्ञान नहीं है, परन्तु ज्ञान के लिये उसका उपादान है इसलिये उपचार के द्वारा ज्ञान कहा जाता है । जब इन्द्रिय और शब्द आदि के संबंध के काल में जिसकी उत्पत्ति होती है इस प्रकार के ज्ञान को व्यजनावग्रह पद कहता है तब अज्ञानात्मक होने की शंका नहीं उठ सकती । यद्यपि इन्द्रिय और अर्थ के संबंध के काल में ज्ञान का अनुभव नहीं होता तो भी उस काल के ज्ञान का अनुमान हो सकता है। विशेष चेष्टा से स्वप्न के ज्ञान का अनुमान जिस प्रकार होता है इस प्रकार यहां भी अस्पष्ट ज्ञान का अनुमान होता है और वह ज्ञान सूक्ष्म होने से तेज के परमाण के समान नहीं प्रतीत होता।
विवेचना-व्यञ्जनावग्रह के पीछे अर्थावग्रह होता है इसमें कोई शंका नहीं । जिस अर्थ के साथ व्यंजनावग्रह होता है उस अर्थ के विषय में अर्थावग्रह होता है । इस रीति से अर्थावग्रह का विषय जो अर्थ है वही अर्थ व्यंजनावग्रह के