________________
३७
को जलता हुआ देखकर मनुष्य निवृत्त होता है, यह व्यवहार निवृत्ति कहलाता है । अन्य को ज्ञान देने के लिये शब्दों का प्रयोग होता है, इसका नाम अभिलाप है । प्रवृत्ति निवृत्ति और अभिलाप रूप तीन व्यवहार प्रयोजन हैं, इस कारण ये प्रत्यक्ष सांव्यवहारिक कहलाते हैं ।
पदार्थों को जानकर सर्वदा प्रवृत्ति, निवृत्ति, अथवा अभिलाप नहीं होता । कोई एक सहकारी कारण जो न हो तो प्रत्यक्ष होने पर भी प्रवृत्ति आदि व्यवहार नहीं होता तो भी उस प्रत्यक्ष में व्यवहार उत्पन्न करने की शक्ति है, इसलिये वह प्रत्यक्ष भी सांव्यवहारिक हैं । जो अंकुर को उत्पन्न करता है वह बीज कहलाता है । अनेक बीज इस प्रकार के होते हैं जो घर में पड़े रहते हैं । वे अंकुर को उत्पन्न नहीं करते, पर उनमें अंकुर उत्पन्न करने की शक्ति होती है इसलिये वे भी बीज कहलाते हैं। बीज के समान व्यवहार के उत्पन्न करने की शक्ति से युक्त होने के कारण जो प्रत्यक्ष व्यवहार को नहीं उत्पन्न करता वह भी सांव्यवहारिक कहलाता है ।
लौकिक मनुष्य वृक्ष आदि को इन्द्रियों से जानता है । यह प्रत्यक्ष सांव्यवहारिक है, अर्थात् अपारमार्थिक है ।
शुक्ति को देखकर कभी कभी रजत का ज्ञान होता है वह अपारमार्थिक है । इस प्रकार के ज्ञानों के समान वृक्ष आदि का सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष असत्य नहीं है । वृक्ष आदि का प्रत्यक्ष जिस विषय को प्रकाशित करता है वह विषय विद्यमान है । विद्यमान विषय का प्रकाशक होने के कारण यह प्रत्यक्ष सत्य है । सत्य होने पर भी इस प्रत्यक्ष की अपारमार्थिकता का कारण अन्य है । आत्मा का व्यापार जब