________________
४२
आतप और बीज आदि कारण हैं परंतु अंकुर जिस प्रकार के बीज से उत्पन्न होता है उसी बीज से उसका व्यवहार होता है-जैसे गेहूं का अंकुर, जौ का अंकुर इत्यादि । यह मुख्य व्यवहार है। पानी का अंकुर अथवा क्षेत्र का अंकुर इस प्रकार नहीं बोला जाता । अंकुर में भेद बीज के कारण होता है। गेहं का बीन हो, तो गेहं का अंकुर होता है और जी का बीज हो तो जौ का अंकूर होता है। पानी और क्षेत्र आदि के कारण अंकुर में भेद नहीं होता। इस लिये अंकुर की उत्पत्ति में बीज ही मुख्य कारण है और क्षेत्र जल आदि सहकारी कारण हैं इसी रीति से जब ज्ञान इन्द्रियों से उत्पन्न होता है, तब मन कारण होता है परंतु सहकारी होता है । मनके कारण ज्ञान में भेद नहीं होता। चक्षु श्रोत्र आदि के कारण ज्ञान में भेद होता है। इसलिये उस ज्ञान में इन्द्रिय असाधारण कारण है। व्यवहार असाधारण कारण से होता है इसलिये इन्द्रिय के द्वारा उत्पन्न ज्ञान इन्द्रिय जन्य ही कहा जाता है।
मलम्-द्वयमपीदं मतिश्रतभेदाद द्विधा । तत्रेन्द्रियमनोनिमित्तंश्रताननुसारि ज्ञानं मतिज्ञानम्, श्रुतानुसारि च श्रुतज्ञानम् । ___ अर्थ-यह दोनों प्रकार का इन्द्रिय जन्य और अनिन्द्रिय जन्य ज्ञान, मति श्रुत भेद से दो प्रकार का है । जो ज्ञान इन्द्रिय और मन दोनों निमित्तों से उत्पन्न होता है पर श्रुत का अनुसरण नहीं करता वह इन्द्रिय जन्य मति ज्ञान है । जो ज्ञान इन्द्रिय और मन के द्वारा