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शब्द का जो संबंध है वह श्रुत का अनुसरण है । इन्द्रियों से अथवा मन से ज्ञान होने के पीछे जो शब्द सहित ज्ञान होता है वह श्रुत ज्ञान है। शब्द के संबंध से रहित जो ज्ञान होता है वह मति ज्ञान है।
मूलम्-नन्वेवमवग्रह एव मतिज्ञानं स्यान्न स्वीहादयः तेषां शब्दोल्लेखसहितस्वेन श्र तत्वप्रसङ्गादिति चेत् । ___ अर्थ-इम रीति से श्रुत के अनुसरण का स्वरूप यदि हो तो अवग्रह ही मति ज्ञान होगा, ईहा आदि मति ज्ञान नहीं हो सकेगा । कारण, ईहा आदि शब्द सहित है इसलिये उसमें श्रुत भाव की आपत्ति होगी।
विवेचना-जो ज्ञान शब्द सहित है वह श्रुत ज्ञान है और जो शब्द से रहित ज्ञान है वह मति ज्ञान है, इस रीति से मति और श्रुत का भेद जो हो तो अवग्रह ही मति ज्ञान होगा । ईहा और अपाय आदि मति ज्ञान के स्वरूप में नहीं हो सकेंगे। ईहा आदि में शब्द का संबंध है। इस रोति से जो श्रुत ज्ञान का लक्षण हो तो मति ज्ञान में अतिव्याप्ति दोष आयेगा। ईहा आदि मति ज्ञानरूप है उसमें श्रत ज्ञान का लक्षण जाता है इस लिये अतिव्याप्ति है।
मलम्-न; श्र तनिश्रितानामप्यवग्रहादीनां संडतकाले श्रतानुसारित्वेऽपि व्यवहारकाले तदननुमारित्वात्, अभ्यासपाटवबशेन