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द्वारा उत्पन्न होने वाले अग्नि आदि के ज्ञान की अपेक्षा स्पष्टता है. परन्तु अवधि आदि प्रत्यक्ष ज्ञानों की तुलना में स्पष्टता नहीं है, इस लिये वह परोक्ष है ।
मूलम् - प्रत्यक्षं द्विविधम्- सांव्यवहारिकम्, पारमार्थिकं चेति ।
अर्थ - प्रत्यक्ष दो प्रकार का है, सव्यिवहारिक और परमार्थ |
मूलम् - समोचीनो बाधारहितो व्यवहारः प्रवृत्तिनिवृत्ति लोकाभिलापलक्षणः संव्यवहारः, तत्प्रयोजनकं सांव्यवहारिकम् - अपारमार्थिकमित्यर्थः यथा अस्मदादिप्रत्यक्षम्,
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अर्थ - प्रवृत्ति निवृत्ति और अभिलाप रूप जो बाधाहीन व्यवहार है वह संव्यवहार है। संव्यवहार जिसका प्रयोजन है वह ज्ञान सांव्यवहारिक है वह पारमार्थिक नहीं है यह भाव है, जिस प्रकार हम लोगों का और अन्य लोगों का प्रत्यक्ष |
विवेचना-चक्षु आदि इन्द्रियों के द्वारा जब वस्त्र आदि को देखता है-तब उसके लेने के लिये प्रवृत्ति करता है । लेने के लिये प्रवृत्ति रूप व्यवहार वस्त्र के प्रत्यक्ष का प्रयोजन है । जिन पदार्थों से इष्ट को सिद्धि होती है उन पदार्थों को देखकर लेने के लिये प्रवृत्ति होती है । जो पदार्थ अनिष्ट के साधन हैं उनको देखकर निवृत्ति होती है । विशाल अग्नि