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आकार समान है। इन्द्रिय और आत्मा से जो ज्ञान उत्पन्न होते हैं उनमें भेद है पर उनमें स्पष्टतारूप समान धर्म है । इस स्पष्टता के कारण इन्द्रियों से जन्य रूप आदि के प्रत्यक्ष में और प्रात्मा आदि से जन्य अवधि आदि प्रत्यक्षों में समानता है। स्पष्टता के कारण दोनों प्रत्यक्षों में प्रत्यक्ष पद का व्यवहार होता है। स्पष्टता में न्यूनाधिक भाव होता है किसी ज्ञान की स्पष्टता न्यून होती है और किसी ज्ञान की अधिक, तो भी स्पष्टता के स्वरूप में भेद नहीं है। छोटे मोटे दीपकों के प्रकाश में तीव्र मन्द भाव देखने में आता है परन्तु उनमें प्रकाश स्वरूप की एकता है-इस कारण समस्त दीपकों का प्रकाश, प्रकाश कहलाता है। दीपकों का तो कहना क्या ? तीव्र मन्द भाव में भारी भेद होने पर भी बिजली, नक्षत्र, चन्द्र और सूर्य का प्रकाश, प्रकाश कहलाता है। दीपक नक्षत्र प्रादि जिन अर्थों को प्रकाशित करते हैं उनमें जिस प्रकार तीव्र मन्द भाव है-इस प्रकार बाह्य इन्द्रियों से उत्पन्न प्रत्यक्षों में और अवधि आदि प्रत्यक्षों में स्पष्टता का तीव्र मन्द भाव है परन्तु समस्त प्रत्यक्षों में स्पष्टता समान रूप से है।
अनुमान और आगम आदि की अपेक्षा नियत वर्ण भाकार आदि का अधिकता से प्रकाशन स्पष्टता है । जिस रीति से प्रत्यक्ष में विशेष धर्मों का प्रकाशन होता है उस रीति से अनुमान और आगम से जन्य ज्ञान में नहीं होता।
अनुमान और आगम आदि के द्वारा जन्य ज्ञान से मामान्य रूप का प्रकाशन होता है।
परोक्ष की व्याख्या करते हैं