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निमित्त है। स्पष्टतावत्व प्रवृत्ति का निमित्त है और वह एक अर्थ में वर्तमान अक्ष के प्रति आश्रितत्व रूप व्युत्पत्ति निमित्त से उपलक्षित है । अनुमान आदिकी अपेक्षा अधिकतासे विशेष धमों का प्रकाशन स्पष्टता है-इस कारण दोष नहीं है।
विवेचना-व्युत्पत्ति निमित्त और प्रवृत्ति निमित्त एक अधिकरण में रहते हैं । प्रत्यक्ष ज्ञान एक अधिकरण है, वह अक्ष के प्रति आश्रित है और स्पष्टता से युक्त है। अक्ष के fr 3.आश्रित भाव से स्पष्टता का ज्ञान होता है ज्ञान रूप एक अधिकरण में होने के कारण अक्ष के प्रति आश्रित भाव स्पष्टतारूप प्रवृत्ति निमित्त का ज्ञान कराता है। यदि अक्ष के प्रति आधितभाव प्रत्यक्ष पद की प्रवृत्ति हो जाय तो प्रथम व्युत्पत्ति के अनुसार प्रत्यक्ष पद को प्रवृत्ति अवधि आदि ज्ञान में नहीं होनी चाहिये । दूसरी व्युत्पत्ति के अनुसार मति आदि में प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए। प्रथम व्युत्पत्ति के अनुसार अक्ष के प्रति आश्रितभाव का अर्थ है "बाह्य इन्द्रियों से उत्पत्ति।" अवधि आदि की उत्पत्ति बाह्य इन्द्रियों से नहीं होती। दूसरी व्युत्पत्ति के अनुसार अक्ष के प्रति आश्रितभाव का अर्थ है जीव से उत्पत्ति, मति आदि की उत्पत्ति प्रधान रूप से जीव के द्वारा नहीं होती।
प्रत्यक्ष पद की प्रवृत्ति में जब स्पष्टता निमित्त होती है तब मति आदिमें और अवधि आदिमें प्रत्यक्ष पद की प्रवृत्ति समान रूप से हो सकती है । जो ज्ञान इन्द्रियों से प्रधान रूप में उत्पन्न होता है और जो ज्ञान प्रधान रूप से आत्मा के द्वारा उत्पन्न होता है उन दोनों ज्ञानों में स्पष्टता रहती है। मति आदि और अवधि आदिकी उत्पत्ति में कारणों का भेद