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है परन्तु उत्पन्न ज्ञान के स्वरूप में भेद नहीं है। स्वरूप समान है इस लिये दोनों ज्ञान प्रत्यक्ष कहे जा सकते हैं।
शब्दों की प्रवृत्ति का निमित्त व्युत्पत्तिके निमित्त की अपेक्षा भिन्न देखा जाता है। 'गच्छति इति गौः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो गति क्रिया करती है वह गौ कहलाती है। गति क्रिया में कर्तृ भाव यदि प्रवृत्ति का निमित्त हो जाय तो गौ जब चलती है तभी ही गौ कही जा सकती है। जब गौ न चले तब उसमें गौ शब्द का प्रयोग नहीं होना चाहिये । परन्तु सोई अथवा बैठी गौ में गौ शब्द का प्रयोग होता है, इस लिये गोत्वरूप सामान्य गौ पद की प्रवृत्ति में निमित्त है। अनेक गायों में समान आकाररूप जो परिणाम देखने में आता है वह गोत्वरूप तिर्यक सामान्य है, और वह बैठी सोई और चलती समस्त गायों में है। यह गोत्व ही गौ शब्द की प्रवृत्ति में निमित्त है। समान आकार जिस प्रकार समस्त गायों का स्वरूप है इस प्रकार स्पाटता समस्त प्रत्यक्ष ज्ञानों का स्वरूप है। उत्पत्ति के कारणों में भेद होने पर भी व्यक्तियों के स्वरूप में यदि समानता हो तो उन व्यक्तियों की एक जाति हो जाती है और उन व्यक्तियों में एक वाचक शब्द का प्रयोग होता है । बाह्य इन्द्रियों से रूप आदि का जो प्रत्यक्ष होता है और प्रधान रूप से आत्मा के द्वारा जो अवधि आदि प्रत्यक्ष उत्पन्न होते हैं उनमें परस्पर भेद है, परन्तु वह भेद स्वरूप की समानता का विरोधी नहीं है। भेद के बिना समानता नहीं रह सकती। गायों में भेद है, किसी का रंग लाल है और किसी का काला, किसी का आकार छोटा है तो किसी का बडा है। रंग आदि का भेद होने पर भी उनके अंगों में