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अर्थ-अक्ष का अर्थ है-इन्द्रिय, उस पर जो आश्रित है, कार्य रूप से आश्रित है, वह प्रत्यक्ष है ।
इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो ज्ञान इन्द्रिय से उत्पन्न होता है-वह प्रत्यक्ष है । प्रत्यक्ष शब्द की दूसरी व्युत्पत्ति को कहते हैं
मलम-अथवाऽश्नुते ज्ञानात्मना सर्वार्थान् व्याप्नोतीत्योणादिकनिपातनात् अक्षो जीवः त प्रतिगतं प्रत्यक्षम् ।
अर्थ--औणादिक सूत्र के द्वारा अश्वातु के द्वारा निपातनसे अक्षशब्द की सिद्धि होती है । जो ज्ञान के द्वारा समस्त पदार्थों को व्याप्त करता है वह अक्ष है । इस व्युत्पत्ति के अनुसार अक्ष शब्द का अर्थ है जीव । जो ज्ञान अपनी उत्पत्ति के लिये जीव पर आश्रित है-वह प्रत्यक्ष है।
विवेचना-प्रथम व्युत्पत्ति के अनुसार चक्षु आदि बाह्य इन्द्रियों से जो घट आदि का ज्ञान होता है वह प्रत्यक्ष है। रूप रस आदि का ज्ञान चक्षु आदि इन्द्रियों से होता है। रूप आदि के प्रत्यक्ष में चक्षु आदि के समान मन कारण है और वह इन्द्रिय नहीं अनिन्द्रिय है। इस रीति से रूप आदि का प्रत्यक्ष केवल इन्द्रिय जन्य नहीं किन्तु इन्द्रिय और अनिन्द्रिय दोनों से जन्य है, परन्तु रूप आदि के प्रत्यक्ष में अनिन्द्रिय मन मुख्य रूप से कारण नहीं है । वह चक्षु आदि का सहकारी कारण है इसलिये रूप का प्रत्यक्ष इन्द्रियों से जन्य कहलाता है।