________________
पर पद प्रमाण के सत्य स्वरूप को प्रकाशित करते हैं। अन्य वादियों ने जिन स्वरूपों की कल्पना को है उसको दूर करते हैं।
'कुमारिल भट्ट' के अनुगामी मीमांसक ज्ञान को प्रत्यक्ष नहीं स्वीकार करते । उनके मत में ज्ञान प्रत्यक्ष नहीं है। ज्ञान का अनुमान होता है। ज्ञान के द्वारा विषय को प्रतीति होतो है। ज्ञात वस्तु के कारण ज्ञान का अनुमान होता है। यदि वस्तु ज्ञात न हो तो ज्ञान की प्रतीति नहीं हो सकती। ज्ञान से पहले वस्तु अज्ञात रहती है ज्ञान होने के पीछे अर्थ प्रतीत होता है, इसलिये ज्ञान के द्वारा अर्थ में ज्ञातता उत्पन्न होती है। बिना ज्ञान के ज्ञातता अर्थ में नहीं उत्पन्न हो सकती इसलिये ज्ञातता के द्वारा उसके उत्पादक ज्ञान को अनुमिति होती है । वस्तु का जो सहज रूप है वह सदा वस्तु के साथ रहता है । जब तक किसी अन्य वस्तु के साथ संबंध नहीं होता तब तक वस्तु का सहज रूप अपने शुद्ध रूप में प्रतीत होता रहता है । मनुष्य का जो स्वाभाविक रूप है, वह अपने शुद्ध स्वरूप में दिखाई देता रहता है। जब मनुष्य हाथ में दंड ले तब मनुष्य दंडी के स्वरूप में प्रतीत होता है। दंडी स्वरूप में मनुष्य का प्रत्यक्ष दंड के संबंध से हुआ है। दंड का संबंध दंडी स्वरूप में मनुष्य की प्रतीति का कारण है । अर्थ के जिस स्वरूप को प्रतीति कभी हो और कभी न हो, कभी किसी वस्तु के साथ हो आर कभी किसी वस्तु के बिना हो, तो अन्य वस्तु के संबंध को प्रकाशित करने वाली प्रतोति अन्य वस्तु के संबंध से होती है। मनुष्य में दंडीपन दंड के संसर्ग से हुआ है। दंडो के स्वरूप में ज्ञान मनुष्य और दंड के संबंध में प्रमाण है। इसी प्रकार अर्थ का जब ज्ञान नहीं होता तब वह अज्ञात रहता है। उस काल में अर्थ ज्ञात रूप में प्रतीत नहीं होता