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आत्मा देह आदि से भिन्न है पचभूतो या अमुक पढायों के संयोजन से चैतन्य की उत्पत्ति होती है, यह बात प्रमाण की कमोटी पर जरा-भी ठीक नहीं उतरती और इसलिए मानने योग्य नहीं है।
अब ये भूतवादी या वैज्ञानिक लोग मृत्यु के लिए जो सिद्वान्त प्रस्तुत करते है, उसका खोखलापन भी देख ले। वे कहते है-"पॉच मे मे किसी भी भूत का सयोग सर्वथा टूट जाये तो चैतन्य-क्ति अदृश्य हो जाती है, अर्थात् मृत्यु हो जाती है।" ___'मृत देह मे से कौन-सा भूत सर्वथा अग हो गया " यह पूछा जाये, तो वे वायु या अग्नि का नाम देते है। परन्तु, स्थिति ऐसी ही हो तो मृत अगेर मे नली द्वारा वायु दाखिल करने से उसमें शक्ति का संचार होना चाहिए । वह बिलकुल होता नहीं है । इतना ही नहीं, बल्कि जिनको 'मिलेडर' में से नली द्वारा 'ऑक्सीजन-गैस' दी जाती है, वे भी मरते देखे जाते है । इसलिए वायु की बात कोई समझदार आदमी स्वीकार नहीं कर सकता । अग्नि की बात भी इतनी ही निरर्थक है। मुदं को तपाया जाये या गरम दवा के इजेक्यान दिये जाये, तो भी उसमें शक्ति का सचार नहीं होता।
इस तरह देहात्मवादियो की तमाम दलीलो का दलन हो जाता है । इसलिए, देह और आत्मा को पृथक ही मानना चाहिए । देह और आत्मा की भिन्नता को स्पष्टतया स्वीकार करना चाहिये ।
आत्मा इन्द्रियों से भिन्न है कुछ लोग कहते है कि देह मे रहनेवाली इन्द्रियाँ ही आत्मा हैं, कारण कि उनके द्वारा जान होता है और ज्ञान आत्मा का स्वभाव है, परन्तु यह मान्यता भी ऊपर की मान्यता की तरह ही भूल भरी है ।
इन्द्रियो के द्वारा ज्ञान होता है, इसका अर्थ तो यह हुआ कि इन्द्रिय
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