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अात्मतत्व-विचार
सयोजन मे यमुक वस्तु बनती है, तो उन वस्तुओं के संयोजन से वह बन्नु अवश्य बननी चाहिए। हरड, बहेडा और ऑवला के सयोजन मे त्रिफला-चूर्ण बनता है, ऐसा कहनेवाल हरड, बहेडा और ऑबले को मिलाकर त्रिफला चूर्ण बनाकर दिखा देते है। तथा हम भी हरड, बहेडा और ऑवल समभाग में एकत्र करें नो त्रिफला चूर्ण बन जाता है । इस प्रकार से पचभूतो से या अन्य पदायों से चैतन्यक्ति की उत्पत्ति मानने वालो को चाहिए कि, पचभूतो के मयोजन मे या अन्य पदार्थों के मिश्रण से चैतन्यशक्ति की उत्पत्ति करके बताएँ लेकिन अब तक कोई ऐसा भृतबादी या वैज्ञानिक नहीं जन्मा, जिसने इस तरह से 'चैतन्य' की उत्पत्ति करके दिखा दी हो।
आज का विज्ञान बहुत उन्नत कहा जाता है, फिर भी वह ऑन्य-जैसी आँख, कान-जैसा कान या नाक जैसी नाक बना नहीं मकता । मच्ची ऑख और नकली ऑख में कितना फर्क होता है, आपने देखा है । एक में अनुपम चमक होती है, तो दूसरी साफ कौडी-जैसी लगती है। बनावटी कान नाक का हाल भी ऐसा ही होता है। जब कि जीवित गरीर के एक भाग की भी नकल नहीं हो सकती, तो समग्र चैतन्य की उत्पत्ति तो हो ही कैसे सकती है ? __कुछ दिन हुए अखबारो में यह खबर आयी थी कि, रूसी. डाक्टर मुद को अमुक प्रकार का इंजेक्यान देकर जीवित कर देने में सफल हुए है। पर, यह बात मानने योग्य नहीं है। ज्यादा स्पष्ट इसे इस रूप में कह सकते है कि, लोगो को एक प्रकार के भ्रमजाल में डालनेवाली है । आदमी में प्राण बाकी रह गये हो और इजेक्वान से उनका पुनः सचार होने लगे तो इसे मुदं को जिन्दा कर देना नहीं कह सकते । अगर वे मुद को जिन्दा कर देते हों, तो फिर वे अपने देश के किसी भी आदमी को मरने ही क्यो देते है ? कम-से-कम नेताओ को तो मृत्यु से नुनि मिल ही जाये, पर उस देश में भी हर रोज हजारों आदमी मरते है और उनमें नेता भी होते है ।