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श्रात्मतत्व-विचार
नहीं होता, इसलिए उनके सयोजन से चैतन्य की उत्पत्ति किसी प्रकार सभव नहीं है | रेती में किचित् मात्र तेल का अग नहीं है; तो रेती के समुदाय म वह कैसे संभव हो ? आज तक किसी ने रेती से तेल निकलते देखा है मुना है ? बिलकुल नहीं !
अगर पचभूतो के विशिष्ट सयोजन से चैतन्यशक्ति पैदा होती हो, वह सब प्राणियों में सब जीवो में समान रूप से व्यक्त होनी चाहिए, लेकिन उसमें तरतमता दिखायी देती है । पचेन्द्रिय प्राणियों में यह शक्ति जितने प्रमाण में व्यक्त होती है, उतनी चार- इन्द्रिय प्राणियों में व्यक्त नहीं होती, चार इन्द्रिय प्राणियों में जितनी व्यक्त होती है, उतनी तीनइन्द्रिय प्राणियों में व्यक्त नहीं होती, जितनी तीन-इन्द्रिय प्राणियों में व्यक्त होती है, उतनी दो इन्द्रिय प्राणियों में व्यक्त नहीं होती और जितनी दोइन्द्रिय प्राणियों में व्यक्त होती है; उतनी एक-इन्द्रिय प्राणियों में व्यक्त नहीं होती ।
१ जिनमें स्पर्शनेन्द्रिय, रसना - इन्द्रिय, त्राण इन्द्रिय, चक्षु-इन्द्रिय ओर श्रोतृइन्द्रिय ये पाँच इन्द्रियाँ होती हैं वे पचेन्द्रिय कहलाते हैं । मनुष्य पचेन्द्रिय प्राणी है । गाय, मंस, घोड़ा, हाथी आदि भूचर, मछली, कछुआ, मगर आदि जलचर, और कौभा, कबूतर, तोता, मोर आदि खेचर भी पचेन्द्रिय प्राणी है ।
२. जिनमें शुरू की चार इद्रियाँ होती हैं, वे चार इद्रिय प्राणी कहलाते ह, बिच्छू, भौरा भ्रमरी, टिड्डी, मच्छर, डास, मसक, कतारी, खडमाकडी आदि चारइन्द्रिय प्राणी हैं ।
जिनमें शुरू की तीन इन्द्रियाँ होती हैं, वे तीन-इन्द्रिय प्राणी कहलाते हैं कानखजुरा, खटमल, जूँ, कीडी, उधेई, मकोडा, ईयल, घीमेल, गाय श्रादि प्राणियों पर होने वाले गिगोढ़ा, चोरकीडा, गोवर के कीडे, ईयल, गोकुलगाय, आदि तीनइन्द्रिय प्राणी है ।
४ जिनमें शुरू की दो इन्द्रियाँ होती हैं, वे दो इन्द्रिय प्राणी कहलाते हैं, राख, कोडा, गढोल, ( पेट के दडे कृमि ), जलो, चन्दनक अलसिया, लाणिया, काठ का कीडा, पानी का पोरा, चूडेल तथा छीप, आदि दो - इन्द्रिय प्राणी हैं ।