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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
आपके आजके प्रवचनोंमें जैनधर्मकी पारिभाषिक शब्दावलिका घटाटोप नहीं किन्तु सीधे रूपसे मानवके भीतर खिरकर बैठने वाली वह सरस वाणी है जो महान आत्माओंका भूषण रही है। उन सीधे और गंवई शब्दोंमें न जाने कैसा जादू है ? किन्तु समयकी पुकार भी उसके साथ ही वहां विराज रही है । मन्दिरों तक ही धर्मको सीमित रखने वाले जैनी क्या समझे कि जैनधर्म कितना महान है और उसकी महानता समझाने वाला भी कितना महानतम है। जैन समाजकी उदारताके 'प्रसाद' में हिन्दु समाजका मंगलमय 'गणेश' भी अपने आपमें विराजमान हो सका है ।
___ हम देखते हैं कि आपके अंग प्रत्यंगसे प्रतिध्वनित होने वाली भारतीयता जैनत्वकी धारामें गोता लगा कर कैसी निखर उठी है, काश जैनी ही नहीं भारतीय भी इस समन्वयको समझते और बनते उसके अनुरूप । तो पूज्य राष्ट्रपिताका स्याद्वाद प्रेरित 'सर्वधर्म समानत्वम्' केवल प्रार्थनाका पद न रह जाता। सागर]
बी. एल. सराफ, बी. ए., एलएल. बी.
स्मृतिकी साधना
"संसारमें शान्ति नहीं। शान्तिका मूल कारण आत्मामें पर पदार्थोंसे उपेक्षा भी नहीं हम लोग जो इन्हें आत्मीय मान रहे हैं इसका मूल कारण हमारी अनादि कालीन वासना है । यदि मानव ऐसे स्थान पर पहुंच गया तो, एक आदमीके सुधारमें अनेकोंका सुधार है । दृष्टि बदलना चाहिए। यही तो सुधारका फल है।
"मेरा यह दृढ़तम श्रद्धान है, कि कल्याणका प्रारम्भ श्रापमें ही होता है ......."उसी समय जो कालादि होते हैं उन्हें निमित्त कारण कहते हैं । श्री आदिनाथ भगवानके अन्तरंगसे मूर्छा (लोभादि) गयी, निमित्त मिला नीलाञ्जनाकी श्रायुके अन्त होनेका । इसी प्रकार सर्वत्र व्यवस्था है। यदि इस हीन दशापन्न प्रान्तका उदय अच्छा होना होगा, तब इस प्रान्तकी मानव समाजके भी सद् अभिप्राय हो जावेंगे । अन्यथा ९९ का फेर है ही-रहेगा और प्रायः था।"
___ उक्त पंक्तियां पूज्य वर्णीजीने एक पत्रमें लिखी हैं। पत्रकी प्रत्येक पंक्ति स्व-पर कल्याणकी भावनासे श्रोत-प्रोत है । आत्मोद्धारकी गहरी निष्ठा और अनुभूतिके साथ साथ जगतके मार्गनिदर्शनकी स्पष्ठ झलक भी मिलती है। उनकी लेखनी और श्रीजमयी सरस भाषामें सदैव यह उत्कट इच्छा निहित रहती है कि संसारके समस्त प्राणी सच्चे मानव धर्मका अनुसरण कर आत्मकल्याण करनेके साथ साथ संसारके समस्त दिग्भ्रान्त मानव समाजका भी उद्धार करें ।
बावन