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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ दोनोंके कर्णों को बीचमें काटकर दोनों दिशाओं में सीधी ऊर्ध्वाकार रेखाएं खींचने पर तीन, तीन क्षेत्र बन जाते हैं । ( आकृति ३) ।"
"इनमें से दो चतुष्फलकोमें प्रत्येककी ऊंचाई ( ह द तथा हा दा । साढे तीन राजु है, लम्बाई (फ ब तथा फा बा ) एक राजुके दो सौ छब्बीस भागोमें से एक सौ इकसठ युक्त चार राजु ( ४ ३३३ ) है, दक्षिण ( बा दा) तथा वान (ब द ) दिशामें मोटाई तीन राजु है, दक्षिण तथा वाम ओर ही ऊपर तथा नीचे क्रमशः डेढ़ राजु है और शेष दो कोनोंमें आकाशके एक प्रदेश भर (शून्यवत् ) है तथा अन्यत्र क्रमसे घटती बढ़ती है । ( अतएव यह सब ) निकल आने पर जब एक चतुष्फलक क्षेत्रको दूसरे पर पलट कर रख देते हैं तो सर्वत्र तीन राजु मोटाईयुक्त क्षेत्र हो जाता है। (श्राकृति ४ ) इसकी लम्बाईमें ऊंचाई तथा मोटाईका गुणा करने पर ४९ ४५५ क्षेत्रफल अाता है।"
____ अवशेष चार चतुरस्र क्षेत्रोंकी ऊंचाई साढ़े तीन राजु है, उनकी भुजाओंकी लम्बाई योजनके दो सौ छब्बीस भागों में से एक सौ इकसठ अधिक चार राजु (४ १६३) प्रमाण है । इनके कौँको
१ 'संपहिं सेस दो खेत्ताणि सत्तरज्जु अवलंबयाणि तेरसुत्तरसदेण एक रज्जु खडिय तत्थ अठैतालीस खंड माहिय णवरज्जु भुजाणि भुजकोडि पाओग्ग कण्णागि कण्णभूमीए आलिहिय दोसु वि दिसासु मज्झम्मि फालिदे तिष्णि तिष्णि खेत्ताणि होत्ति।' (पृ. १३-१४)
२ 'तत्थ दो खेत्ताणि अद्ध ठरज्जुरतेहाणि छब्बीसुत्तर-वेसदेहि एगरज्जु खंडिय तत्थ एगट्ठिखंड भाहिय खंड सदे॥ सादिरेय चत्तारि रज्जु विक्खंभाणि दक्षिण-वामहेट्ठिमकोणे तिषिणि रज्जु वाहल्लाणि, दविखण-वाम कोणेसु जहाको उमरिम हेट्रिटमेसु दिवड्ढरज्जु गहल्लागि, अवसेसदोकोणे एगागासबाहल्लाणि, अप्णत्थ कम-वढिगद बाहल्लाणि घेत्ता तत्थ एगखेत्तुस्सुवरि विदियखेत्ते विवज्जासं काऊग टविंदे सम्वत्थ तिणि रज्जु बाहल्लखेत्तं होइ । एदस्स वित्थार मुस्सेहे गुणिय वेहेण गुगिदे खायफल मेत्तियं होई ४९२१७।' (पृ०१४ )
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