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वी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
सन् १८५७ ई० के विप्लवमें कालपी गदरका केन्द्र सा बन गया था। अनेक लड़ाइयां भी वहां हुई । फलस्वरूप कालपीमें उन दिनों लूटमारका बाजार गर्म रहता था । वर्माजी के पूर्वज भी लूटमारके शिकार हुए किन्तु ब्रिटिश सरकारके खैरख्वाह होने के कारण किसी के प्राणों की क्षति नहीं हुई । आप के पूर्वजों का बनाया हुआ मंदिर अब भी कालपी में है जो पाहूलाल खत्रीके मंदिरके नाम से प्रसिद्ध है और इस मंदिरमें उन विप्लवकारी दिनोंकी स्मृतियां अब भी विद्यमान हैं ।
वर्माजी के पूर्वज धार्मिकनिष्ठाके लिए प्रसिद्ध थे। उसका अंश अब भी आप के वंशजों में वर्तमान है। पवित्रताका आपके यहां विशेष ध्यान रखा जाता है। ब्राह्मण समुदायके प्रति आप के वंशजों की बड़ी ही ऊंची धारणा है। उसे वे अब भी बड़ी ही श्रद्धासे देखते हैं और वर्मा जी के पिता तो इन सद्गुणों में बहुत ही बढ़े-चढ़े थे । रामचरितमानस और रामचन्द्रिकाके वे बड़े ही प्रेमी थे। वर्माजीने अपने पिताजीका अनुकरण कर रामचन्द्रिकाके प्रति बचपन ही में बड़ा अनुराग उत्पन्न कर लिया था।
प्रारम्भिक शिक्षा कालपी ही में समाप्त कर वर्मा जी लखनऊ के केनिङ्गकालिजमें प्रविष्ट हुए और इण्ट्रेस तथा इण्टर की परीक्षाएं भी आपने दो बार दी, किन्तु सार्वजनिक कार्यों में फंसे रहने के कारण तथा और अनेक कारणों से उसमें श्राप अनुत्तीर्ण हो गये । यद्यपि आप उसे पास न कर सके किन्तु आपकी योग्यता अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत, फारसी, उर्दू, हिन्दी और बंगला में बहुत ही ऊंची थी। आप मराठी तथा और भी कितनी ही भाषाओंके जानकार थे । शिलालेख आदि की लिपियां आप बड़ी ही सरलता से पढ़ लेते और उसका अर्थ बतला देते थे इन पंक्तियों के लेखकको भी अनेक बार आपकी असाधारण विद्वत्ताका परिचय मिला है ।
___ वर्मा जी में बचपन ही से नेतृत्त्व शक्ति आ गयी थी। उनके विद्यार्थी जीवनकी कितनी ही मनोरंजक घटनाएं हैं । हास्यके भावसे प्रेरित होकर स्वामी रामतीर्थ जी ने तो उन दिनों ही 'खुदाई फौजदार' की उपाधि आपको दे डाली थी।
सन् १८९९ की लखनऊ वाली कांग्रेसमें स्वयंसेवकों के कप्तान के रूप में बड़ी ही सफलता पूर्वक आपने सेवा की। ऐंटी-कांग्रेस नामकी संस्थाका जो कि उसी वर्ष विरोध करनेके लिए बनी थी, आपने स्वयं तथा अपने अन्य सहयोगियों द्वारा उसी वर्ष में ही खातमा कर दिया ।
___कलकत्तेका एकादश हिन्दी-साहित्य सम्मेलन अापके. ही प्रधान मंत्रित्वमें हुआ था और यह आपका ही प्रयत्न था कि इस सम्मेलनमें चालीस हजारका दान सम्मेलनको मिल सका और जिससे 'मंगलाप्रसाद पारितोषक' तबसे प्रतिवर्ष दिया जा रहा है और जब तक दिया जाता रहेगा तब तक स्वर्गीय वर्माजी की याद उसी प्रकार अमर बनी रहे गी।
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