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गुरुवर श्री गणपति प्रसादजी चतुर्वेदी
दतिया निवासी स्व० श्री राधेलालजी गोस्वामीसे आपने यद्यपि षलिंग तक ही सिद्धान्तकौमुदी पढ़ी थी, परन्तु आपने अपने छात्रोंको पूर्ण सिद्धान्त-कौमुदी पढ़ायी है। टीकमगढ़के तत्कालीन विद्वान् श्री राजारामजी शास्त्री (रज्जू महाराज) से आपने न्यायशास्त्र पढ़ा था, एवं श्रागन्तुक विद्वानोंसे स-स्वर वेद पाठका भी अभ्यास कर लिया था। अब किसी विषयका छात्र आपकी पाठशालासे निराश होकर नहीं जाता था । आयुर्वेदके कितने ही छात्रोंने आपकी पाठशालामें अध्ययन कर उच्च परीक्षाएं दी हैं । यद्यपि आपने कोई परीक्षा नहीं दी पर आपके कई छात्रोंने शास्त्री परीक्षा तक उत्तीर्ण की है। कर्मकाण्ड, वैदिक यज्ञादिमें श्राप इतने ख्यात हो गये हैं कि अब तक दूर दूर तक आप प्रधान याशिकके रूपमें ले जाये जाते हैं। चौबेजी पुराणादिपर इतना सुन्दर प्रवचन करते हैं कि एक बार आपके पाणिनि व्याकरणके गुरु श्री गोस्वामीजी इतने मुग्ध हो गये कि जैसे ही श्री चौबेजी व्यासगद्दीसे उतरकर नीचे आये कि उन्होंने इनके पैर पकड़ लिये । चौबेजीको इससे अत्यन्त दुःख हुआ और गोस्वामीजीके चरणों में प्रणामकर पश्चत्ताप करने लगे । गोस्वामीजी बड़े भावुक थे, वे कहने लगे मैंने गणपति प्रसाद चौबेके नहीं पुराण प्रवक्ता भगवान् वेदव्यासके चरण छुए हुए हैं।
आप दूर दूर पुराण प्रवचनके लिए जाने लगे। इन पंक्तियोंके लेखकको अन्ते-वासी होने के नाते कई बार ऐसे अवसरों पर आपके साथ जानेका सौभाग्य मिलता रहा है । माघमासकी विरल-तारिका, प्रभात कल्पा, रात्रि है, गुरुजीके स्नान हो रहे हैं । अपना नित्यका कर्म और नियमित सप्त-शतीका पाठ करके सूर्योदय होते न होते व्यासगद्दी पर बैठ जाते हैं,फिर सायंकाल चार बजे उठते हैं। कैसा उग्र तप है ? मैं तो अपनी किशोरावस्थामें भी उसे देखकर चकित हो जाता था।
हेमन्तकी रात्रियां हैं, परीक्षार्थियों को पढ़ाते पढ़ाते बारह बजा देते हैं, और फिर उष:काल में उठकर छात्रोंको जगाकर फिर पढ़ाने लगते हैं। चालीस पैंतालीस वर्ष तक ऐसा निरन्तर एवं निःस्वार्थ अध्ययन कौन करा सकता है।
छोटी सी लंगोटी लगाये, ग्वालोंको गाएं सौंप कर लौटते हैं, सहसा दीवान साहबकी सवारी आ जाती है, और इन्हींसे प्रश्न होता है चौबेजी कहां हैं ? आप उसी स्थितिमें अपना परिचय देते हुए उनका कार्य करने लगते हैं, कैसी सरलता है ?
आपका प्रभाव न केवल विद्यार्थी समाज तक ही सीमित था परन्तु, साधारण जनता भी आपके तप, त्याग एवं सरलता आदि गुणों से प्रभावित थी और आपका सम्मान करती थी। जब सन् १९३० ई०में नगरमें साम्प्रदायिक अशान्ति हो गयी थी, श्री घासीराम जी व्यास उन दिनों जेल भेज दिये गये थे, तब तत्कालीन जिलाधीश डार्लिंग साहबने श्री चौबेजीको आग्रह पूर्वक शान्ति-स्थापना समितिका प्रमुख सदस्य चुना और अशान्ति पीड़ित दीन जनतामें चौबेजी द्वारा ही आर्थिक सहायता वितरित करायी। आपको भाषण-शक्ति अपूर्व थी। सनातन धर्मके महोपदेशक स्व. श्री कालूरामजी शास्त्रीने
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