Book Title: Varni Abhinandan Granth
Author(s): Khushalchandra Gorawala
Publisher: Varni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti

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Page 676
________________ मनसुखा और कल्ला कुम्हारिनके चहरेसे अनन्तवेदना टपक रही थी। मैं सोच रहा था "क्या बनावटी कहानियां इस सच्ची घटनासे अधिक करुणोत्पादक हो सकती हैं ?" इसके बाद मैंने कई महानुभावोंसे मन सुखा और कल्लाको दुर्घटनाका जिक्र किया है । श्रीयुत 'क' महाशय, जो लखपती आदमी हैं, बोले, 'हां ऐसी घटनाएं अक्सर घटा करती है । क्या किया जाय ?" 'ख' महोदयने कहा, "हां सुना तो हमने भी था । सांप छप्पर पर से गिरा था। खैर ।" 'ग' ने साफ ही कह दिया, "आप भी कहां का रोना ले बैठे ! हम किसीको दोष नहीं देते । स्वयं हम भी कम अपराधी नहीं हैं। हमारे पास सांप काटेकी दवाई (लैक्सिन) रक्खी हुई थी पर अपने आलस्य या लापर्वाहीके कारण उसकी सूचना हम अासपासके ग्रामों तक नहीं भेज पाये थे। जब निकटकी एक बुढ़ियाने कहा, "कुम्हारिन भूखों मरती है, उस दिन शामको मैं रोटी दे आयी थी", तब हमें उस भारतीय प्राचीन प्रथाका स्मरण आया जिसके अनुसार मातमवाले घरपर पासपड़ौसियों द्वारा भोजन भेजा जाता है । मैं दुबख्ता चाय पी रहा था और नियमानुसार सुस्वादु भोजन कर रहा था और पड़ोसके ग्राम में पांच प्राणियों पर यह वज्रपात हुआ था, मैं उस प्राचीन प्रथाको भी भूल गया ! यह था जनताको सेवा करनेका दम्भ रखनेवाले एक लेखककी संस्कृतिका हृदय-हीन प्रदर्शन ! अपने पति और पुत्रको एक साथ ही खोकर वह कुम्हारिन न जाने किस तरह अपने चार बच्चों का पालन कर रही है। पुस्तकों अथवा लेखों द्वारा नकली ज्ञानका सम्पादन करने वाले लेखक उसकी असीम वेदनाकी क्या कल्पना भी कर सकते हैं ? "दुखके एक कण में जितना ज्ञान भरा हुआ है उतना साधु महात्माओंके सहस्त्रों उपदेशों में नहीं" सुप्रसिद्ध आस्ट्रियन लेखक स्टीफन ज्विगका यह कथन सर्वथा सत्य है । ___ कुण्डेश्वर (टीकमगढ़) के निकट नयेगांव में करुणाकी उस साक्षात् मूर्तिको श्राप मजदूरी करते हुए पावेंगे। उसके ये वाक्य अब भी मेरे कानों में गंज रहे हैं"मदद देवे को को धरो है ? बिपता में को की को होय !" सच है-"दीनबन्धु त्रिन दीनकी को रहीम सुधि लेह" ५८९

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