Book Title: Varni Abhinandan Granth
Author(s): Khushalchandra Gorawala
Publisher: Varni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti

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Page 674
________________ मनसुखा और कल्ला श्री पं० बनारसीदास चतुर्वेदी १० जुलाई सन् १९४२ दिन भर पानी बरसता रहा था। शामको फुहार पड़ रही थी। टहलने के लिए हम सडककी श्रोर निकल गये थे और लौट ही रहे थे कि इतनेमें मनसुखा बेलदार (कुम्हार) उधरसे आता हुआ दीख पड़ा । हाथमें एक कपड़ा था, जिसमें बहुतसे जामन बंधे हुए लटक रहे थे। मैंने मजाकमें कहा"ठहरो ! यहां डाकू हैं ! लामो सब माल असबाब धर दो !" मनसुखा मुसकराने लगा और अपनी पोटरी हमारी ओर बढ़ा दी। हमने आठ-दस जामन ले लिये । जामन पासके पेड़ों के ही थे और उन दिनों जम्बू वृक्षोंका अखण्ड दान चल रहा था और प्रत्येक पथिक मनमाने जामन खाता चला जाता था। ११ जुलाई सड़कपर पत्थरके टुकड़े डालनेकी मजदूरी मनसुखाने कर ली थी। नदी-तलमें वह पत्थर तोड़ रहा था। गधे पास ही खड़े हुए थे । बच्चे पत्थर बीन रहे थे। मैंने पुल परसे अावाज दी "मनसुखा तुम्हारी तस्वीर बहुत अच्छी आई है । बच्चोंके फोटो भी ठीक उतरे हैं।" मनसुखाने कहा-"सो तो ठीक, पर तस्वीरें हमें दिखाश्रो तो सही।" मैंने कहा-"अक्छा कल आना, सब फोटो दिखला दूंगा, पर दूंगा नहीं ! एक तस्वीर पांच पाने में पड़ती है।" मनसुखाने कहा-'अच्छा पंडितजी, पांच आने पक्के रहे ।" १२ जुलाई मनमुखा हमारे बगीचे पर आया और बोला-"पंडितजी कहाँ मुरम (पथरीली मिट्टी) गिराना चाहते हैं?" मैंने कहा-"यही प्रामके पेड़ोंके नीचे, जहां कीचड़ बहुत हो जाती है।" १३ जुलाई ५८७

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