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वर्णी अभिनन्दन-ग्रन्थ
Who never ate his bread in sorrow, Who never kept the midnight hours. Weeping and waiting for the morrow, They know you not, Ye heavenly powers.
[ ए दैवी शक्तियो ! वे मनुष्य तुम्हें जान ही नहीं सकते, जिन्हें दुःखपूर्ण समय में भोजन करने का दुर्भाग्य प्राप्त नहीं हुआ तथा जिन्होंने रोते हुए और प्रातःकालकी प्रतीक्षा करते हुए रातें नहीं काटीं ।]
--महाकवि गेटे
मैं मंदाकिनिकी धवल धार
श्री चन्द्रभानु कौर्मिक्षत्रिय 'विशारद'
है विन्ध्याचलकी पुण्य गोदमें मेरा जन्मस्थल समोद । गिरिके उपलों में कर कलकल, मैं करती बाल विनोद सरल ।।
गिर-गिर कर उठती बार-बार, मैं मंदाकिनि की धवल धार ।
मैं बन जाती निर्मल निझर, करती हर-हर के सुन्दर स्वर । होकर आकर्षित दर्शकगण, देखें मेरा अद्भुत जीवन ॥
देती कविको अनुपम विचार, मैं मंदाकिनि की धवल धार ।।
मैं चट्टानों में गिर-गिर कर, बिखराती हूँ मुक्ता सुन्दर । फिर उन्हें मिटाकर अति सत्वर, बतलाती हूं-यह जग नश्वर ।।
यों पहनाती उपदेश-हार, मैं मंदाकिनि की धवल धार ।
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