________________
वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ
सुना कि पास के गांव के किसी कुम्हार और उसके बच्चे को सांपने काट खाया है । उस वक्त हमें मनसुखाका खयाल भी नहीं आया । शामको खबर मिली कि मनमुखा और कल्लाको ही सर्पने काटा था और दोनों ही मर गये !
हृदयको बड़ा धक्का लगा । मनसुखा और उसके कुटुम्बके सभी प्राणियोंने हमारे बगीचे में बहुत दिनों तक मजदूरी की थी। सब घरवाले बाल बच्चे लगे रहते थे । ६ गधे भी साथ थे और तत्र एक रुपया रोज उन्हें मिलता था ।
उस समय मैंने आठ-दस चित्र लिये थे । "मजदूर के जीवन में एक दिन" शीर्षक लेख लिखनेका विचार था । चित्र बनकर बहुत दिन पहले ही आ गये थे, पर मैं अपने प्रमादवश उन्हें मनसुखा तथा उसके बक्चोंको अभी तक दिखला नहीं पाया था। जब कभी जिक्र आता तो कह देता, "अच्छा भाई, कल आना । "
वह 'कल' नहीं आया, काल आ गया ! : मनसुखा और कल्ला उस धामको चले गये, जहांसे कोई वापस नहीं लौटता | चार दिन बाद मनसुखाकी है, उजियारी अपनी दुःख गाथा सुना रही थी -- “इतवारकी रातको वे फारमकी और धरमदास बाबाकी पूजा करने गये थे नौ बजे लौट आये रातको तीन बजे होंगे। उन्होंने कहा, "जगत है का ? मोय काऊने काट खाऔ ।" भीतर मेरा लड़का कल्ला पड़ा हुआ था । पासमें तीन बहनें और एक बुआ की लड़की लेटी हुई थी । कल्ला बोला “हमैं सोऊ काट खाऔ । मोय गुलगुलौ लगो तो " लड़कियोंको सांपने छुआ भी नहीं बाप बेटे दोनों को गाड़ी पर सवार कर टीकमगढ़ ले गये। बहुत इलाज किया पर कोई बस नहीं चला। अगर कल्ला (लड़का ) भी बच रहता तो मैं किसी तरह सन्तोष कर लेती। दोनों चले गये ।" इसके बाद कुम्हार आंखोंसे आंसू, टपकाती हुई बोली "जैसी विपता मोरे ऊपर परि गई उसी काऊ पै न परी होइगी ।"
कल्पना तो कीजिये उस मज़दूर औरत के दुर्भाग्यकी जिसका पति और ग्यारह वर्षका लड़का दोनों एक साथ मृत्युके मुख में चले गये हों ! अब वह कुम्हारिन है और उसके चार बच्चे हैं, तीन लड़कियां और लड़का, जो डेढ़ महीने का है। यद्यपि उनके पिताको मरे अभी चार दिन भी नहीं हुए थे, वह दस बरसकी भगवन्ती मज़दूरी पर गयी हुई थी और सात सालकी मुनिया, छह सालकी त्रिनिया आश्चर्यचकित नेत्रों से अपने पिता तथा भाईकी तस्वीरें देख रहीं थी। डेढ़ महीने का मन्नू भी इस दृश्यको देख रहा था ।
जब मैंने वह चित्र दिखलाया, जिसमें कल्ला घोड़ीपर चढ़ा हुआ था और बगल में बाप खड़ा हुआ था तो कुम्हारिन विह्वल हो उठी। रो-रो कर कहने लगी
"हां टीकाको यो तो बेटा, तुम्हारे हिंगा" कल्लाका विवाह हो चुका था ।
५८८