Book Title: Varni Abhinandan Granth
Author(s): Khushalchandra Gorawala
Publisher: Varni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti

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Page 683
________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ यही नहीं इसने मत्स्यसे मगध तकके प्रदेश अधीन किये । वसुने शुत्ति मती नदीके तटपर शुक्तिमति नगरीको जो अाधुनिक बांदाके आस पास थी, अपनी राजधानी बनाया था। इस राजाके साथ चेदिमें यादवोंका शासन समाप्त हो कर पौरवोंका प्रारम्भ होता है । तत्कालीन चेदि देशका वर्णन महाभारतमें श्राता है । इन्द्रके शब्दोंमें "चिदि देश पशु के लिए सुखकारी, धन-धान्यसे पूर्ण, भोग विलासकी सामग्री से युक्त और रमणीक है । वह अगणित धन रत्नोंसे पूर्ण है तथा वहांकी वसुधा पशुओंसे भरी हुई है। वहांके मनुष्य सरल प्रकृतिके, सन्तोषी, साधु, उपहासमें भी झूठ न बोलने वाले, पितृभक्त और कमजोर बैलको हलमें नहीं जोतने वाले हैं।" इस प्रतापी राजा वसुके पांच पुत्र थे, इसलिए इनका राज्य पांच भागोमें बंट गया; मगध, कौशाम्बी, कारुष, चेदि और मत्स्य । महाभारत काल में ये पांचों राज्य वर्तमान थे। चिदि देश में उस समय शिशुपाल तथा उसके दो पुत्रों धृष्टकेतु और शरभका राज्य रहा। शिशुपालके पिताका नाम दमघोष और माताका नाम श्रुतश्रवा था। श्रुतश्रवा वृष्णि वंशी शूरसेनकी पुत्री बसुदेवकी बहिन तथा श्रीकृष्णकी बुना थी। दशाण देशका कोई क्रमबद्ध इतिहास नहीं मिलता। नल-दमयन्ती की कथा महाभारतके वनपर्वमें पाती है। उससे पता लगता है उस समयसे कुछ पहिले वहां कोई राजा सुदामा राज्य करते थे जिनकी दो पुत्रियां थीं। उनमें से एकका विवाह विदर्भ देश के राजा भीमसे हुआ था। वे दमयन्तीकी माता थीं । दूसरी पुत्रीका विवाह चेदिके राजा सुबाहुसे हुआ था। इसके लगभग ४३ पीढ़ी बाद वहां राजा हिरण्यवर्मा का पता लगता है। सभवतः जब राजा पाण्डु दिग्विजय के लिए निकले तब यही राजा वहां रहे होंगे जिनसे उन्हें युद्ध करना पड़ा था । वे कुरुकुलके विरोधी भी जान पड़ते हैं ।पूर्वभागा स्ततो गत्वा दशाणाः समरे जिताः । पाण्डुना नरसिंहेन कौरवाणां यशोभृता ।। २६ ॥ इन्हीं राजा हिरण्यवर्माकी पुत्रीसे पांचाल नरेश द्रुपदके पुत्र शिखण्डीका विवाह हुआ था। शिखण्डीके विषयमें अनेक किम्वदंतियां प्रसिद्ध हैं । कहते हैं वे जन्मके समय कन्या थे । उनकी माताने सौतके डरसे उन्हें पुत्र के रूपमें पाला। परन्तु विवाहके पश्चात यह भेद खुल गया । राजा हिरयवर्माको जब इस रहस्यका पता लगा तो वह बहुत क्रुद्ध हुआ और बदला लेने के लिए द्र पदपर चढ़ दौड़ा परन्तु इसी बीचमें कहते हैं, किसी यक्षकी कृपासे शिखण्डी वास्तवमें पुरुष बन गया। इसके अतिरिक्त शिखण्डीके विषयमें यह भी प्रसिद्ध है कि वास्तवमें पिछले जन्ममें वह काशीराजकी पुत्री अम्बा थे । वस्तुतः ये सब (९) भारतीय इतिहास की रूपरेखा, पृट २०६ (१०)महाभारत, आदिपर्व, अध्याय ६५, (औंध संस्करण) (११) , , ,,११३ श्लोक २५-२६

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