Book Title: Varni Abhinandan Granth
Author(s): Khushalchandra Gorawala
Publisher: Varni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti

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Page 685
________________ वर्णी-अभिनन्दन ग्रन्थ जाने पर इसके अतिरिक्त हाथ और नयन गिर जायेंगे उसीके हाथसे इसकी मृत्यु होगी। श्री कृष्णने जब उसे अपनी गोदमें लिया तब शिशपालके ये दोनों अतिरिक्त हाथ और तीसरी आंख गिर पड़ी। यह देखकर उसकी मां जो श्री कृष्णकी बुआ होती थी, बहुत डरी और उनसे अपने पुत्रके प्राणोंको भीख मांगने लगी। उस समय श्रीकृष्ण ने अपनी बुआको वचन दे दिया था कि वे शि पाल के सौ अपराध क्षमा कर देंगे । राजसूय यज्ञमें श्रीकृष्णकी पूजा होने पर जब शिशपालने उन्हें गालियां दी तब उसके अपराध सौ से बढ़ गये थे और इसीलिए श्री कृष्णने उसे मार डाला था। बहुत सी ऐसी कथाश्रोंकी भांति यह कथा भी कविकी कल्पना मात्र है। वस्तुस्थिति कुछ और है। निस्सन्देह चेदिनरेश शिशुपाल श्री कृष्णका परम शत्रु था, परन्तु महाभारतसे यह नहीं जान पड़ता। उसने पाण्डवोंका भी विरोध किया था। निस्सन्देह यज्ञके अवसर पर उसने श्री कृष्णके साथ भीम और पाण्डवों की भी निन्दा की थी, पर साथ ही यह भी कहा था, हम युधिष्ठिरको धर्मात्मा समझ कर आये थे । इसके अतिरिक्त सभापर्वमें हम उसे युधिष्ठिर की उपासना करते देख चुके हैं । भीम जब जययात्रा पर निकले तब भी उसने उनसे युद्ध नहीं किया बल्कि आगे बढ़कर उनका स्वागत किया और उनका अभिप्राय जान कर प्रसन्नता पूर्वक यज्ञमें आना स्वीकार किया। भीम तब उससे सत्कृत होकर तेरह रात वहां रहे८ । तस्य भीमस्तदा चख्यौ धर्मराज चिकीर्षितम् । सच तं प्रति गृह्येव तथा चक्रे नराधिपः॥ १६ । ततो भीमस्तत्र राजन्नुषित्वा त्रिदशक्षपाः। सत्तः शिशु पालेन ययौ सबलवाहनः ॥ १७ ॥ __शिशुपालकी श्री कृष्णसे शत्रुताके तीन प्रमुख कारण जान पड़ते हैं । पहिला कारण तो यह था कि श्रीकृष्ण न तो किसी देशके राजा थे,न तत्त्वदर्शी और न तपस्वी महात्मा। वे राजकुलके एक व्यक्ति थे फिर भी सारे देशमें उनकी प्रतिष्ठा थी। उनकी विलक्षण प्रतिभाका लोहा तत्कालीन मानव समाज मान चुका था और इसीलिए उनकी पूजा करता था। शिशुपाल भाईकी इस प्रतिष्ठासे जलता था और उन्हें नीचा दिखाने के प्रयत्न किया करता था । होता यह था हर बार उसे मुँह की खानी पड़ती थी। रुक्मिणीका विवाह एक ऐसी ही घटना थी। वह कुण्डिनपुरकी राजकुमारी थी और श्री कृष्णसे प्रेम करती थी । इसके विपरीत उसका भाई रुक्म उसका विवाह चेदिनरेश शिशुपालसे करना चाहता था । शिशुपाल मगध साम्राज्यका प्रधान सेनापति था। उससे मित्रता करके रुक्म अपना स्वार्थ साधन करना चाहता था परन्तु रुक्मिणी भी सजग थी। उसने द्वारिकामें श्रीकृष्णके पास अपना संदेशा भेजा और जब शिशुपाल वरात लेकर कुण्डिनपुर पहुंच चुका तब वे भी वहां पहुंचे और रुक्मिणीको हर लाये । शिशुपालने (१७) देखो (१२) (१८) महाभारत-सभापर्व, अध्याय २९, इलोक १६-१७ ५९८

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