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महाभारत काल में बुन्देलखण्ड कपोल कल्पित कथाएं सौतीके मास्तिष्कसे उपजी हैं । सत्य इतना है कि शिखण्डी द्रुपदके वीर पुत्र थे । वे महारथी थे और अर्जुन की सहायता से उन्होंने भीष्मका वध किया था । इन्हीं पराक्रमी द्रुपद पुत्रका विवाह दशार्ण देशके राजा हिरण्यवर्मा की पुत्रीसे हुआ था ।
राजा हिरण्यवर्मा के बाद वहां के राजा सुधर्मा का नाम महाभारत में आता है । वे पहले पहल उस समय महाराज युधिष्ठिरकी सभा में दिखायी देते हैं जब मय दानवने इन्द्रप्रस्थका निर्माण किया था। लिखा है 'सुर्मा.. पुत्रसहित शिशुपाल . ... यह सत्र और विज्ञोंके जाने दूसरे बहुत से क्षत्रिय भी धर्मराज युधि - डिरकी उपासनामें लगे रहते थे । २ । " परन्तु इन्हीं राजासुधर्माने भीमसेनसे, जब वे राजसूय यज्ञके अवसरपर पूर्व दिशा की ओर विजययात्रा पर निकले, 'रूएं खड़ी करने वाली लड़ाई की थी और बड़े पराक्रमी भीमसेनने अति बलवान सुधर्मा को यह लीला देखकर उनको प्रधान सेनापतिके पद पर बैठाया था ।"
तत्र दाशार्णको राजा सुधर्मा लोमहर्षणम् । कृतवान्भीमसेनेन महायुद्धं निरायुधम् ॥ ६ ॥ भीमसेनस्तु तद्दृष्ट्वा तस्यकर्म महात्मनः । अधिसेनापतिं चक्रे सुधर्माणं महाबलम् ॥ ७ ॥
यही महावीर राजा सुधर्मा महाभारत युद्ध में चेदि और कारुष गणों के साथ पाण्डवों की ओर से लड़े थे। लिखा है, बारहवें दिन उन्होंने राजा भगदत्तसे " वृक्षोंसहित पंखों वाले पर्वतों" की तरह युद्ध किया और वीरगतिको प्राप्त हुए १४ । इनके बाद दशार्ण देशके राजा थे चित्राङ्गद । जिस समय अश्वमेध यज्ञके घोड़ेके पीछे पीछे अर्जुन दशार्णदेश पहुंचे थे उस समय इस बलवान अरिमर्दन घोड़ा रोक कर अर्जुनसे अत्यन्त भयंकर युद्ध किया था " ।
महाभारत के बाद दशार्ण देशके इतिहासका और कुछ भी पता नहीं लगता । हां जैन ग्रन्थोंमें ( आवश्यक चूर्णि ) लिखा है यहांके राजा दशार्णभद्र को भगवान महावीरने दशार्णकूट अथवा गजाग्रपदगिरि पर्वतपर दीक्षा दो थी । मृत्तिकावती इसकी राजधानी थी ६ ।
बुन्देलखण्डके दूसरे भाग चेदि देशका वर्णन ऊपर आ चुका है। शिशुपालकी कहानी सर्व विदित है । पुराणों में उसे हिरण्यकश्यप और रावणका अवतार कहा गया है । कहते हैं जिस समय वह पैदा हुआ था उसके तीन नेत्र तथा चार भुजाएं थीं । ज्योतिप्रियांने बताया जिसकी गोद में
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महाभारत सभापर्व, अध्याय ४ श्लोक २९-३३
सभापर्व, अध्याय २९, इलोक ६-७
द्रोणपर्व
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( १५ )
अश्वमेधिकपर्व अध्याय ८३ श्लोक ५-६
(१६) प्रभी अभिनन्दन ग्रन्थ- जैन ग्रन्थोंमें भौगोलिक सामग्री (ले० डा० जगदीशचन्द्र जैन ) पृ० २६०
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