________________
महाभारत कालमें बुन्देलखण्ड था पैत्रिक राजका अधिकारी हुआ। सबसे बड़े यदु के हिस्सेमें शुक्तिमती, वेत्रवती और चर्मण्वती के आसपासके प्रदेश आये । बुन्देलखण्डका अधिकांश भाग इसी प्रदेशमें आ जाता है। तुर्वसुको जो भाग मिला था वह साधारणतया आजकलका बुन्देलखण्ड है। उस कालमें यह कारूष देश कहलाता था । यह पुराना राज्य था जिसे; कहते हैं मनुके एक पुत्र करुषने बसाया था। दुह चर्मण्वती के उत्तर और यमुनाके पश्चिममें स्थित भूभागके स्वामी हुए और अनुको जो प्रदेश मिला वह अयोध्याके पश्चिम तथा गंगा यमुनाके उत्तर में था । यह मोटे तौर पर बुन्देलखण्ड और उसकी सीमा परके देशोंका ब्योरा है। उस कालमें आर्योंने बुन्देलखण्ड के दक्षिण में नयी बस्तियां नहीं बसायी थीं।
पुराणों में आता है, पिता ययातिके मांगने पर, अपना यौवन न देनेके कारण यदुको श्राप मिला था कि उसके कुलमें राजा न होंगे। यदुके कुल में प्रायः राजा नहीं होते थे पर वे किसी आपके कारण नहीं बल्कि इसलिए कि यादव लोग गणराज्यमें विश्वास करते थे । श्रापकी कल्पना गणराज्य के प्रति घृणाका परिणाम है। उपरोक्त राजा विदर्भ इसी कुलकी एक शाखामें हुए । इन्होंने विन्ध्य और ऋक्ष मेखलाका पूर्वीभाग मेकल पर्वत तक जीत लिया था। यह नया प्रदेश इन्हींके नाम पर विदर्भ देश कहलाया । पुराना प्रदेश इनके पौत्र चिदिके नाम पर चेदि कहलाने लगा। ये वैदिक साहित्यमें बहुत प्रसिद्ध हैं। विश्वभारतीके डा० मणिलाल पटेलके अनुसार ऋग्वेदकी दानस्तुतियोंमें जिस कयु नामका वर्णन आया है वह चेदि का पुत्र था। चेदि की उदारता प्रसिद्ध थी। ऋग्वेद ८-५-३९ में कहा है-“कोई भी उस मार्गसे नहीं चल सकता जिस पर चेदि चलते हैं। इसलिए चेदियोंसे अधिक उदार राजा होनेका दावा कोई आश्रयदाता नहीं कर सकता ।" यह महाभारतसे लगभग साढ़े सात सौ वर्ष अर्थात पचास पीढ़ी पूर्व की बात है । इसके अतिरिक्त इतिहासमें इनके कुलका कुछ विशेष पता नहीं मिलता । इनके नौ पीढ़ी बाद एक राजा सुबाहुका पता लगता है । इनकी पत्नी दशार्ण देशके राजा सुदामा की पुत्री और नलकी पत्नी दमयन्तीकी मौसी थी। नलसे विछुड़ जाने पर दमयन्ती बहुत दिन तक इन्हींके राजमहलमें दासी बनकर रही थीं । चेदि राजा सुबाहु, अयोध्याके राजा ऋतुपर्ण, निषधके राजा नल तथा पौरव राजा हस्तीका समकालीन था। इसके बाद चेदिके यादवों का इतिहासमें पौरव राजा वसु के काल तक कुछ भी पता नहीं लगता । वसु एक पराक्रमी राजा था उसे चक्रवर्ती कहा गया है। उसने राजा सुबाहुके लग-भग २७ पीढ़ीबाद चेदिके किसी यादव शासकको पराजित किया था। वह यादव राजा अवश्य वीर रहा होगा क्योंकि चेदि-विजयके पश्चात वसुने बड़े गर्व के साथ चैद्योपरिचर (चेदि गणके ऊपर चलने वाला) की उपाधि धारण की थी।
(८) "भारतीय अनुशीलन"-ऋग्वेदकी दान स्तुतियोंमें ऐतिहासिक उपादान ।
५९५