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महाभारत कालमें बुन्देलखण्ड श्री विष्णु, प्रभाकर
जमुना ( यमुना ),नर्मदा (रेवा), चम्बल (चर्मण्वती) और टोंस (तमसा )से परिवेष्टित भूभागको आज बुन्देलखण्ड कहा जाता है। कवि ने इसकी सीमाको इस प्रकार स्पष्ट किया है-.
यमुना उत्तर और नर्मदा दक्षिण अंचल । पूर्व अोर है टोंस पश्चिमांचल में चम्बल ॥ उरपर केन, धसान. वेतवा, सिंध नदी है। विकट विन्ध्यकी शैल-श्रेणियां फैल रही हैं। विविध सुदृश्यावली अटल आनन्द-भूमि है। प्रकृति छटा बुन्देलखण्ड स्वछन्द भूमि है ।।
इस भूभागका ढलान दक्षिणसे उत्तर को है। नर्मदाके उत्तरी कलपर महादेव और मैकाल श्रेणियों तथा अमर कंटकसे प्रारम्भ हो कर यमुनाके दक्षिण कूल पर पहुंचता है । आज यह प्रदेश भारतके चार प्रान्तोंमें बंटा हुआ है। उत्तर तथा पश्चिमोत्तरका प्रदेश युक्तप्रान्तमें है। दक्षिण में सागर तथा जबलपुर जिले मध्यप्रान्तमें हैं । भोपाल केन्द्रके पास है । पश्चिमकी अोर नवनिर्मित मालवसंघमें पुराने सिंधिया राज्यका कुछ भाग है । मध्य में बुन्देलखण्डका वह भाग जो छोटे छोटे राज्यों में बंटा हुआ था अब विंध्यप्रदेश कहलाता है । यद्यपि इतिहास इस बात का साक्षी नहीं है कि बुन्देलखण्डकी यह सीमा कभी दृढ़तासे मान्य रही है, इसके विपरीत यह समय समयपर विस्तृत और सकुंचित होती रही है तो भी भूमि, भाषा तथा बोलीकी दृष्टिमे यह सीमा स्वाभाविक है।
इतिहासमें इस प्रदेशके अनेक नाम प्रचलित रहे हैं, बुन्देलखण्ड विन्ध्येलखण्ड ( विन्ध्य इलाखण्ड) जेजाक (या जीजाक) भुक्ति, जुझारखण्ड, जुझौति, वज्र, चेदि और दशार्ण । बुन्देला राजपूतोंकी क्रीड़ाभूमि होनेके कारण बुन्देलखण्ड और विंध्या अटवीमें स्थित होनेके कारण यह विन्ध्येलखण्ड कहलाने लगा वैसे बुन्देल स्वयं विन्ध्येलका अपभ्रंश हैं । बुन्देल गाहड्वालोंके वशंज थे जो विंध्यमें रहनेके कारण बुन्देले कहलाये । स्वर्गीय श्रीकृष्ण बलदेव वर्माके मतानुसार वैदिक कालीन यजुर्वेदीय कर्मकाण्डका प्रथम अभ्युदय इसी प्रदेशमें हुआ था। इसी कारण इसका नाम “यजुर्होती" हुआ जो कालान्तरमें बिगड़ कर 'जीजभुक्ति"बनगया। बुन्देलोंसे पहिले यहां पर चन्देल राजपूत राज्य करते थे। चन्देल शब्द चेदिसे निकला जान ।
(१) श्री मुंशी अजमेरी (२) इतिहास प्रवेश ( जय चन्द्र विद्यालंकार ), पृष्ट २५५. (३) मधुकर, बुन्देलखड प्रान्त निर्माण अंक, पृष्ट ३४७.
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