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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
टूडे खंगार और भगौना धीमर, सरला धोबी और चतुरी सुन्नाबसीर और घंसा काछी ही वस्तुतः पृथ्वीपुत्र हैं; उनकी उपेक्षा करनेवाला साहित्य वास्तवमें एकाङ्गी है; यही नहीं, वह दर-असल श्रापित भी हैं, वह न कभी फूलेगा फलेगा।
आज फिर बरसातमें भीगता हुआ सुजानका बूढा बाप दीख पड़ा और मैं सोचता हूं कि ये सेवासंघ, ये पूजा मण्डल, ये मन्त्री महोदय, ये धारा-सभा, ये नेतागण और ये हमलोग (रियासतोंके पालतू, फालतू साहित्यक) आखिर किस मर्जकी दवा हैं ?
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