Book Title: Varni Abhinandan Granth
Author(s): Khushalchandra Gorawala
Publisher: Varni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 688
________________ महाभारत कालमें बुन्देलखण्ड , चेदि काशी करुषाणां नेतार दृढ़ विक्रमम् । सेनापतिम् मित्रन्न धृष्टकेतुमुपा ऽऽ दिशत् ॥ यहां गणका अर्थ गणतंत्र प्रणालीसे नहीं है । तत्कालीन भारतमें अनेक गणतंत्र थे। परन्तु चेदि देश एकतत्रं ही था और वहांका शासक "राजा" कहलाता था । शिशुपाल तो सम्राज्यवादी जरासंधका प्रबल समर्थक था। चेदिको जनपद भी कहा है। इसका अर्थ राज्य प्रणालीसे नहीं है बल्कि किसी जन विशेष ( अर्थात कवीले ) के रहनेके स्थानको जनपद कहते थे। इस जनमें एक ही कुल या जातिके लोग रहते हों यह बात नहीं थी । उसमें आदान प्रदान चलता रहता था। चेदि जनपद में वसु से पहले यादव लोगोंका शासन था । वमु पौरव था। तब यह निश्चित है चेदिगण में यादव और पौरव दोनों सम्मिलित थे। आज भी बुन्देलखण्डके गडरिये अपनेको यादववंशी कहते हैं। वैसे दशार्ण देशमें यादव राज महाभारतके अन्त तक बना रहा था । __ महाभारत-कालमें बुन्देलखण्डकी स्थिति प्रायः इस प्रकार थी। चर्मग्वती और शुक्तिमतीके बीचका यमुनाके दक्षिणका प्रदेश चेदिराज्यमें था और वेत्रवतीकी पूर्वी शाखा शुक्तिमतीके बीच का भाग दशार्ण देश कहलाता था । इसकी दक्षिणी सीमा मध्यप्रान्तके सागर जिले तक थी । पश्चिममें अवन्तिराज था। आज वही मालवा है। कुछ लोग दशार्ण को भी पूर्वी मालवा कहते हैं। पश्चिमोत्तर भागमें शूरसेन देश था । उत्तर में पंचाल, वत्स, काशी, और कौशल राज थे । पूर्वमें पुराना कारुष राज्य था । केन और टोंस ( तमसा ) के बीचका भाग सम्भवतः तब इसीमें रहा होगा। उसके दक्षिणमें भी अवश्य कुछ राज्य ( विन्ध्याचलके पूर्व में ) थे पर उनका ठीक पता नहीं लगता। ठेठ दक्षिणमें नर्मदा तटपर पश्चिमी राज्य था और आगे तत्कालीन अार्योंकी अन्तिम बस्ती विदर्भ थी। श्रार्योंके इन राज्योंके अतिरिक्त बीच बीचमें अनार्य जातियां भी बसती थीं। वे लोग असभ्य नहीं थे। नगर बसाना उन्होंने ही आर्योंको सिखाया था। आज भी बुन्देलखण्डकी सीमा पर और बुन्देलखण्डमें गौंड, कोल, शवर, ( सौर ) और मुण्ड आदि प्राचीन जातियां बसती हैं। विन्ध्यअटवीमें होनेके कारण इस प्रदेशमें बन प्रान्तर बहुत हैं, इसलिए लोग बड़ी सुगमता पूर्वक वहां बने रहे होंगे। इनमें शबर और मुण्ड तो आग्नेय वंशके हैं२८ । ये विन्ध्यवासिनी देवीके उपासक हैं । बभ्र वाहन इसी जातिके कहे जाते हैं। उस काल में इस प्रदेशकी सभ्यता और संस्कृतिका इतिहास दंड निकालना बड़ा कठिन है। महाभारत अपने युगसे बहुत बादमें लिखा गया है जबकि उसका काल “संहितायुग" में पड़ता है । इस युगमें वेदोका वर्गीकरण हुआ था । यह ईसासे लगभग १७७५ से लेकर १४५५ वर्ष पूर्व तक फैला हुआ (२८) भारतीय इतिहासकी रूपरेखा, पृष्ठ, ११०-११४ ६०१

Loading...

Page Navigation
1 ... 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716