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जीवनके खण्डहर
उसका किया कुछ होता नहीं, भाई बिलकुल छोटा है वह क्या करने लायक है, देख रेख न होनेसे सब ढोर मर गये । कई नग गायें थीं कई नग भैंसें, अब कुल दो बैल बच रहे हैं, घी दूध कैसे हो।"
__ "कुछ खेती पाती भी नहीं ?" मैंने पूछा ।
"दो खेत पड़े हैं, पर उनको जोतने वाला कौन है ? पड़े रहते हैं मुकतमें लगान भरना पड़ता है।"
"तब गुजर कैसे होती है ?" "यही कवार करके, बैर बेच लिये या महुए बीन लिये ।" "तेरी शादी होगयी।"
लड़की चुप थी, मैं समझ गया शादी होगयी है । मनमें एक प्रश्न और उठा जब यह लड़की अपनी ससुराल चली जावेगी तब उस बुड्ढे बापका क्या होगा ? पर ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जिनका उत्तर नियति ही दे सकती है मनुष्य नहीं । वह प्रश्न मनका मन ही में दब गया, मैं कुछ देर चुप रहा ।
___ जब लड़की जानेको हुई मुझे एक बात फिर सूझी, मेरे हृदय में बहुत दिनोंसे नौकरीके अतिरिक्त कुछ दूसरा धंधा करनेकी इच्छा छिपी थी क्योंकि नौकरी में तो 'नौ खाये तेरहकी भूख' रहती है, विशेषकर रियासतों में । लड़कीसे उसके खेतोंकी बात सुनकर मेरी वह इच्छा जाग उठी, बोला-'खेत मुझे नहीं दे सकती ?
'मालिक ले लो, मैं तो ऐसा ही कोई आदमी चाहती हैं जो उन्हें जोतने लगे । मैं बापको भेजूंगी, आप बात कर लेना"
___ दूसरे दिन सबेरे मैं अपने कमरे में बैठा अपनी एक पुस्तक लिख रहा था । मेरे कमरेके सामने एक सेठजीका मकान है, सेठजी अपने दरवाजे पर खड़े थे। इतने में एक बुढा उनके सामने आकर खड़ा हो गया। कमरमें उसके चिथड़ोंकी एक लंगोटी थी, शरीर पर एक मैली लाल धोतीका जीर्ण शीर्ण टुकड़ा । कमर उसकी झुक रही थी शरीर भरमें झुर्रियां थीं,आंखों में धुंधलापन । उसे देखते ही सेठ जी समझे कोई भिखमंगा है। आवाज बुलन्द करके बोले-'उन पाठकजीके दरवाजे जा, वे मिनिस्टर हुए हैं, सबको सदावर्त बांटते हैं।
“मैं सदावर्त लेने नहीं आया, मास्टर भैयाका मकान कहां है ?'' ''सामने जा" सेठजीने उसी बुलन्द आवाजमें कहते हुए उससे अपना पिण्ड छुड़ाया।
मैं समझ गया वही बुड्ढा है, उसे बुलाया और बात शुरु की । वह बात बातमें कहता-'कहो हो', मुझे जबरन कहना पड़ता-'हां,' मुझे मालूम हुआ कि बुड्ढा बात करने में बहुत ही चतुर है । जात का अहीर है, जिन्दगी भर दूधमें पानी मिलाकर बेचता रहा होगा, एकके दो करता रहा होगा इत्यादि,