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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
परसों सबेरे मेरे रोग ने भयानक रूप धारण किया-Heart sink होने लगा, नाडिका बैठ चली, विश्वनाथ जी से आप सब मित्रों की मङ्गल कामना करते हुए अटल निद्रा लेने ही को था कि डा० के injections व मकरुध्वजके डोजोंने Heart और नाडिका को सम्हाल रिया। अब मैं improve कर रहा हूं और अभी जब तक बिल्कुल ठीक न हो जाऊंगा तब तक आठ दस दिन यहां रहंगा, यदि कैलाशवास भी कर लूं तो भी मेरी शुभ कामनाओंको सदैव अपने साथ समझिए गा और सदैव मातृभाषाकी सेव में रत रहिए गा।
___ बुन्देलखण्डके गौरव का ध्यान रहे. सोते जागते जो कुछ लिखिये पढ़िये वह मातृभूमिके गौरवके सम्बन्धमें ही हो । शोक ! मैं इस बीमारीके कारण शय्यासीन होने से 'सुधा' के ओरछाङ्क को अभी कुछ नहीं लिख सका हूँ । एक पुराना लेख 'बुन्देलखण्ड का चित्तौर ओरछा दुर्ग' था, वह सरस्वती को दे दिया था। १ तारीख तक आपके पास उसकी प्रति (सरस्वती की) पहुंचेगी तथा एक प्रति महाराज की सेवामें व एक दीवान साहब की सेवामें पहुंचे गी, उसे आप अवश्य देखिये गा । लेख सचित्र है, उसमें ओरछाका गौरव है, चित्तौराधिपति प्रतापपर वीरशिरोमणि वीरसिंहदेवका ऐतिहासिक प्रमाणोंके साथ प्राधान्य है। चित्तौरसे
ओरछा गौरवशाली है यह भाव हैं। यदि आठ दस दिन और जीवित रहा तो सुधाके अङ्कके लिए लेख पहुंचे गा।
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वर्मा जी के मित्रों की संख्या इतनी अधिक थी कि किसी भी बड़े आदमी, साहित्यिक या नेता की चर्चा कीजिये आपको तुरन्त वर्मा जी से यह मालूम हो जायगा कि उनसे उनका कब और कैसे साक्षात्कार हुआ, कितने दिन और कैसे उनके साथ उन्होंने कार्य किया, किसकी उनके लिए कैसी धारणा थी, इत्यादि बातोंसे आपके अंगणित मित्रों के सम्बन्धमें अनेक-अनेक मनोरंजक बातें मुझे आपसे समय-समय पर सुनने को मिली है। महात्मा गांधीसे लेकर छोटे से छोटे कांग्रेसके नेतासे आपका परिचय था, महामना पूज्य पं. मदनमोहनजी मालवीय और पं० मोतीलालजी नेहरूसे तो बड़ी ही घनिष्ठता थी, श्री सी० वाई० चिन्त मणि सुप्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता राखालदास बनर्जी आपके बड़े ही घनिष्ट मित्र थे ।
बर्लिनके प्राच्यविद्या-विशारद डाक्टर वान लूडर्स से भी आपका गहरा परिचय था, श्री रामानन्द जीचटर्जी.श्री पं० महावीर प्रसाद जी द्विवेदी और आधनिक प्रमख साहित्यिकोंसे आपकी जान पहिचान थी।
वैसे तो प्राय: सभी कवियों की कविताओं का आपने अध्ययन किया था किन्तु कवीन्द्र केशवके आप अनन्य भक्त और उपासक थे । आप बहुधा कहा करते थे कि कवि तो सचमुच अकेले 'केशव' ही हुए हैं । जब वर्माजी कवीन्द्र केशव और बुन्देलखण्ड की प्रशंसा करने लगते थे तो उनकी जबान थकती नहीं थी और छेड देने पर तो और भी अधिक श्रोज आ जाता था. हिंदो संसार में वर्माजीके उक्त विषयोंके
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