Book Title: Varni Abhinandan Granth
Author(s): Khushalchandra Gorawala
Publisher: Varni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti

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Page 657
________________ वर्णी-अभिनन्दन ग्रन्थ ढुंड़त फिरत बिछुर गए नेही, जांचत हैं हर द्वारे। 'ईसुर' नई कोउ बेदरदी, दरस दच्छना डारे । प्रेम-पंथमें आसक्तिमें आकुलता और विरक्तिमें सान्त्वना मिल जाया करती है अब ना होबी यार किसीके, जनम जनम कौं सीके । समझे रइयौ नेकी करतन, जे फल पाये बदीके । यार करे से बड़ी बखेड़ा, विना यारके नीके। अब मानुस से करियो 'ईसुर', पथरा रामनदीके । इत्यादि कितने ही गीत इस विषयके सुने गये हैं। रामावतार और कृष्णावतार विषयक गीतोंके भी कुछ उदाहरण देखिएरामावतार कोपभवनमें रानी केकई राजा दशरथसे कह रही हैं कि हे राजाजी ! भरतजी राज पावें और श्रीरामजी वन जावें, यह वरदान मैं मांगती है। प्रतिज्ञा कर दीजिए कि चौदह वर्ष पश्चात् ही रामचन्द्रजी अयोध्या में श्रावें । राजा दशरथकी क्या दशा हो गयी है वह अनुभव ही करते बनती है । उन्हें आगे कुत्रां और पीछे खाई दिखलायी देती है-- राजा राज भरत जू पावें, रामचन्द्र बन जावें। केकई बैठी कोप भवन में, जौ बरदान मंगावें । कर दो अवध अवधके भीतर, चौदई बरसै श्रावें । श्रागे कुत्रां दिखात 'ईसरी', पाछे बेर दिखावें । भरत अयोध्यामें आ गये, रानी केकईसे वे कह रहे हैं कि मैया दोनों भाइयोंको वनमें भेज दिया है, पिताजीको स्वर्गमें भेजकर रघुवंशियोंकी नाव डुबा दी है। अरे माता कौशिल्या और सुमित्राके एक एक ही पुत्र तो था ! हे देव ! कैसे इस अवधकी लाज रहती है जब उसपर कालीकी छाया पड़ गयी है बन कौं पठै दये दोइ भैया, काये केकई मैया । पिता पढ़ सुरधाम, बोर दई, रघुबंसन की नैया । हती सुमित्रा कौशिल्या के, एकई एक उरैया । 'ईसुर' परी अवधमें कारी, को पत भांत रखैया। रावणको मन्दोदरी समझा रही है कि आपने मेरा कहना न माना । श्री सीताजी उनको रानी हैं जो अंतर्यामी हैं, यह सोनेकी लङ्का धूलमें मिल जावेगी अन्यथा सीताजी सहित श्रीरामचन्द्रजीसे मिल लो ५७०

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