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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
हम पै राधा की सिवकाई, ऐसी कां बन पाई । उन कौं धुन से ध्यान लगा के, एकउ दिना न ध्याई । ना कभऊं हम करी खुसामद, चरन कमल चित लाई। प्रन कर पाप करत रये हो गश्रो, को को पुन्न सहाई ।
परत लाड़ली ईसुर जा सें, सिर से गाज बचाई । इत्यादि कितने ही भावपूर्ण गीत आपके विविध विषयों पर उपलब्ध हैं; किन्तु यहां उन सबकी चर्चा करना सम्भव नहीं । 'ईसुरी-प्रकाश' में वे संग्रहीत हैं। आशा है हमारे इस सफल लोक-कविका उचित सम्मान करने के लिए हिन्दीभाषा-भाषी सम्मिलित रूपमें उद्योग करेंगे और ईसुरीके यश-शरीरको, जो कि कविताओं और गीतोंके रूपमें यत्र तत्र सर्वत्र प्रचलित हैं, यथासाध्य एकत्रित कर सुन्दर-तम रूप देनेका प्रयत्न करेंगे।
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