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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
हंसोड़ भी अव्वल नम्बरके थे। कुछ स्थलोंका हास्य उनका ऐसा मुंहतोड़ हुआ करता था कि बीरबलकी याद आ जाया करती थी।
वर्मा जी अच्छे कवि भी थे। उन्होंने कितनी ही कविताएं समय-समय पर लिखीं। भर्तृहरि नाटक और प्रेत-यज्ञ नाटक तो प्रकाशित भी हो चुके थे । एक ग्रन्थ क्षत्र प्रकाश भी प्रकाशित हुआ था किन्तु अधिकांश साहित्य, जो कि उन्होंने कठिन परिश्रम करके तैयार किया था, अब भी अप्रकाशित है। उसमें बुन्देलखण्ड का इतिहास और कवीन्द्र-केशवके ग्रन्थों की सम्पादित सामग्री है। अपने कितने ही पत्रोंमें उसकी उन्होंने चर्चा की है किन्तु लेखके बढ़ जानेके भयसे उसे यहां देना अनुपयुक्त ही सा है।
वर्मा जी ने आजीवन साहित्य सेवा की है और साहित्य सेवा करते ही करत २८ मार्च को केशव-जयन्ती ही के दिन रामनवकी सं० १९८८ वि० को काशीमें पण्य सलिला भागीरथीके तटपर आपने गो लोकवास किया।
भारतवर्ष की प्रमुख साहित्यक संस्थाओंसे उनका निकटतम सम्पर्क रहा और उनके द्वारा उन्होंने साहित्य की बड़ी भारी सेवा की । कालपी का 'हिन्दी विद्यार्थी सम्प्रदाय' उन्होंके प्रोत्साहनसे पनपा है !
यों तो उनके विशाल परिवारमें कितने ही योग्य व्यक्ति हुए और है किन्तु स्व० व्रजमोहन जी वर्मा तथा चि० मोतीचन्द्र जी की वे अधिक प्रशंसा किया करते थे और अपना वास्तविक उत्तराधिकारी बतलाया करते थे ।
स्व० ब्रजमोहन जी वर्मा की सेवाओंसे जो कि 'विशाल भारत' द्वारा उन्होंने की थी हिन्दी संसार अपरिचित नहीं है । चिं० मोतीचन्द्रजी भी अपने पितामहके पदचिन्हों पर सफलता पूर्वक उत्तरोत्तर आगे बढ़ रहे हैं यह संतोषका विषय है । सम्प्रदाय को प्रगतिशील बनाने में उनकी लगन, कार्यतत्परता और सहनशीलता सदैव ही प्रशंसनीय रही है ।
मुझे उस दिन और भी अधिक प्रसन्नता होगी जिस दिन स्वर्गीय वर्मा जी के साहित्यको प्रकाश में लानेको अोर वर्माजीके वंशधरोंका तथा सम्प्रदायका कदम आगे बढ़ेगा । जीवन भर परिश्रम पूर्वक उन्होंने जो मैटर तैयार किया था उसका सदुपयोग होना नितान्त और शीघ्र ही आवश्यक है । इससे उनकी आत्माको तो शांति मिलेगी ही किन्तु हिंदी संसारका भी उससे बड़ा ही हित हो सके गा ऐसी पूर्ण आशा है।
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