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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ है, जो दीनहीन होते हुए भी ऊंचे दिलवाले, निरभिमानी होते हुए स्वाभिमानी, और कानूनी दुनियाके बढ़ते हुए फरेबसे दूर रहते हुए भी अपनी बातके धनी होते हैं, हमारे ग्राम-गीत उनहीके हृदयोद्गारों को प्रकट करते हुए प्रकाशमें आते हैं।
इधर हमारी साहित्य की बढ़ती हुई प्रगतिमें ग्रामभाषाकी उपेक्षा ही सी रही, उसको अपनानेके लिए कोई सम्मिलित उद्योग नहीं किया गया । यही कारण है कि हमारा शब्द-भण्डार प्रायः संकीर्ण ही सा प्रतीत होता है।
यह संतोष का विषय है कि शिक्षित समुदाय का ध्यान ग्राम-गीतों की ओर आकर्षित हुआ है और यह भी उनकी विजयका स्पष्ट उदाहरण है। ग्राम-साहित्यके प्रचार और प्रसारसे जहां जन साधारणमें पढ़ने लिखने की रुचि उत्पन्न हो सके गी वहां हिन्दीभाषा-भाषियों को भी कितने ही नवीन शब्द, जिनको अब तक हम व्यवहारमें नहीं लाते थे, प्राप्त हो जायेंगे, और इस प्रकार शब्द भण्डार बढ़नेसे हमारी भाषा जो कि राष्ट्र-भाषा हो चुकी है, सब प्रकार पूर्ण हो सके गी।
पिङ्गलशास्त्रके विद्वानोंने 'वाक्यम रसात्मकम् काव्यम्,' रससे पूर्ण वाक्यको काव्य माना है । कविता का सम्बन्ध हृदय और मस्तिष्क दोनों ही से हुआ करता है । ग्राम-गीत यद्यपि पिङ्गलशास्त्रके कड़े बन्धनोंसे जकड़ा हुआ नहीं होता है किन्तु यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि उनमें कवित्व नहीं। ग्राम-गीतोंकी उपयोगिता
ग्राम-गीतोंकी रचना जिनके द्वारा हुआ करती है, जिनके लिए वे रचे जाते हैं, उनको वे यथेष्ट आनन्द और सच्ची तन्मयता देने में अवश्य ही फलीभूत होते हैं ।
'भाव अनूठो चाहिए भाषा कोई होय' के अनुसार भी यदि वे रसादिकसे परिपूर्ण न भी हों तो भी भाव-प्रधान तो होते ही हैं, कविता की क्लिष्ट-भाषा हृदय को आनन्द-विभोर नहीं कर सकती, जब उसका अर्थ समझाया जावे तब ही उसका रसास्वादन चित्तको प्रसन्न करता है और वह भी बहुत ही थोडे समुदाय का। किन्तु सरल भाषामें गाये गये गीत असंख्य जन-समुदायके हृदयों में विना किसी टीका टिप्पणी, अर्थ या व्याख्या किये ही प्रवेश पा जाते हैं । उनमें विना वायुयानके 'आसमान पर चढ़ाने वाली' और 'लूली लोमड़ी को नाहर बनाने वाली' थोथी कवि-कल्पनाएं भले ही न हो किन्तु उनमें होता है ग्राम-जीवन के प्रत्येक पहलू का सरल भाषामें मार्मिक और सच्चा वर्णन, वंशपरम्पराकी रूढ़ियों, ऐतिहासिक सामग्रियों और कितने ही अन्य विषयों का ऐसा समावेश जिसे सुनकर हृदय फड़क उठता है ।
स्वाभाविकता तो इन गीतोंमें ऐसी समायी हुई रहती है जैसे तिलमें तैल यही कारण है कि