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स्वर्गीय पं० शिवदर्शनलाल वाजपेयी धक्का नहीं लगा, वरन् स्वयंसेवक समिति, पुस्तकालय, स्थानीय शहर कमेटी, कांग्रेस कमेटी, सभी को भयंकर आघात पहुंचा ।
दिनचर्या
इच्छा शक्ति में दृढ़ एवं नियम पालनमें कठोर होने के कारण लोग श्री वाजपेयी जी को हठी समझते थे । वस्तुतः वे हठी तो नहीं हठधर्मी अवश्य थे ! उनका नियम था प्रातः चार बजे शय्या त्याग देना, शौचादिसे निवृत होना और सद्यः स्नान कर सन्ध्योपासन हित बैठ जाना । स्वस्थ हों या अस्वस्थ, शक्ति रहते वह अपने नियमसे नहीं टले । तत्पश्चात् वह विद्यालय के लिए चन्दा करने चले जाते या तत्सबन्धी अन्य कार्य में संलग्न हो जाते । दस बजे से अपनी दूकान पर पहुंच जाते । वहां दूकान के कामके साथ-साथ विद्यालयका काम भी करते और उसकी उन्नति के लिए नयी-नयी योजनाएं बनाते । चार बजे दूकान छोड़कर चार कोस तक गावोंमें चन्दा करने चले जाते । चन्दाका धन अपने साथ नहीं लेते। किसी विश्वस्त गृहस्थ के यहां रखकर चले आते, भोजन तो कहीं करते ही न थे, और यदि प्यास भी लगती तो परिचित आचार व्यक्तिके यहां ही पानी पीते । यदि लौटने में अधिक रात्रि हो गयी और घर में भोजनादिकी व्यवस्था न पायी तो खिचड़ी पकायी और पुत्रके साथ खाकर विद्यालय का आय-व्यय का हिसाब करने लगे । जब तक हिसाब ठीक न बन पाता सोने न जाते । इधर चाहे कितनी देर में सोते पर प्रातः चार बजे अवश्य उठ बैठते । कभी-कभी रात्रि में बहुत कम सो पाते फिर भी दिनमें कभी न सोते थे ।
निरीक्षण
संस्कृत विद्यालयों में प्रायः अहर्निश ही अध्ययन क्रम चलता रहता है । वे अध्यापकों का अधिक सम्मान करते थे । अतः उत्तरदायी होने पर भी कभी उनसे अध्ययन कार्यके विषय में किसी प्रकारके प्रश्न न करते । विद्यार्थियों का निरीक्षण करने में सतत सतर्क रहते और अपनी दूकान पर ही बैठे-बैठे देखते रहते कि कौन विद्यार्थी बाजार अधिक आते जाते हैं । और अति देखकर चुपके से आचार्य से उन लड़कोंके आचार विचार आदि के विषय में सावधानीसे जांच पड़ताल कराते । विद्यालय से उनका घर एक मील से कुछ ही कम होगा, परन्तु रात्रि में भी निरीक्षण करनेसे न चूकते । घरसे लालटेन लेकर चल दिये, विद्यालय से सौ कदम दूर ही बत्ती कम कर ली और बाहर खिड़कीके पास चुप चाप खड़े हो हो कर प्रत्येक कक्ष में प्रत्येक श्रेणीके विद्यार्थियों को देखते रहते कि पढ़ते हैं या बातें करते हैं; और बातें भी करते हैं तो विषय क्या है । इस प्रकार
प्रायः विद्यार्थियों की व्यक्तिगत वृत्तियोंसे परिचित ही रहते थे। हां इतनी उदास्ता उनमें थी कि दुर्गुणों को देख कर भी दुगुणीसे घृणा नहीं करते थे और न कभी किसी विद्यार्थीके साथ कठोर व्यवहार करते थे, उनमें कष्ट सहिष्णुता एवं क्षमाशीलता असाधारण थी, जब अधिक ठण्ड पड़ती या जल बरसता होता, या काली रात होती, ऐसे अवसरों पर प्रायः निरीक्षण अवश्य ही करते ।
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