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स्वर्गीय पं० शिवदर्शनलाल वाजपेयी
जिन्होंने जयपुर सम्मेलन, और तिब्बी कालेज दिल्लीकी परीक्षाओं के लिए बीसियों क्षात्रोंको योग्य बनाया। प्रत्यक्ष ज्ञान के लिए एक रसायन शास्त्रीजी नियुक्त किये गये जो आयुर्वेदिक छात्रोंको औषधि निर्माण में कुशल बनाते हैं, यहां सब प्रकारके रस, स्वर्ण भस्म, वंग भस्म और सभी आसव, अरिष्ट, वटी, घृत, तैल, आदि सिद्ध किये जाते हैं और यह रसायनशाला औषधि निर्माण में प्रमाण मानी जाती है । समीपके प्रान्तीय डिस्ट्रिक्ट बोर्डके औषधालयों में यहीं से सभी औषधियां जाती हैं, यही नहीं कि केवल आयुर्वेद में ही इतनी उन्नति हुई हो अपितु व्याकरण, ज्योतिष, न्याय, वेदान्त, पुराण, इतिहास, दर्शन और वेदका भी पूर्ण और विधिवत् शिक्षण होने लगा ।
विद्यालयका विकास-क्रम
पहिले तो कार्य यथा तथा ही चलता रहा पर श्री वाजपेयीजी के प्रवेश करते ही संस्था की रुपरेखा ही कुछ और होने लगी। कार्यक्रम सुचारु रूप से चलाने के लिए पं० वैद्यनाथ शास्त्री की नियुक्ति की गयी। उन्होंने योग्यतापूर्वक कार्य किया । कुछ काल पश्चात् वह फर्रुखाबाद चले गये । इसके बाद पं० त्रिभुवननाथजी आये । ये बड़े ही विद्वान और बुद्धिमान् थे । इनके आचार विचारसे तत्कालीन वातावरणको पहिले से अधिक लाभ हुआ। यह व्याकरण चार्य, साहित्याचार्य तथा वेदान्त शास्त्री थे। अनेक वर्षों तक सन्तोषजनक कार्य करके यह गोयनका विद्यालय काशी चले गये और इनके स्थान पर पण्डित प्रवर रमाशंकर जी प्रतिष्ठित हुए। यह व्याकरण और साहित्य दोनों के ही प्राचार्य थे । पर यह ज्ञात न हो सका कि दोनों विषयों में से उनकी किसमें अधिक गति है । वस्तुतः दोनों ही विषयों में अप्रतिहत गति थी । अध्यापन की यह विशेषता थी कि खिलाड़ी से खिलाड़ी विद्यार्थी जटिलतम विषय को आसानी से हृदयंगम कर लेता । और स्वभाव सरल, परिश्रमी । इनके समयसे वास्तविक विकास का प्रारम्भ हुआ। इन्होंने तो अध्ययन और अध्यापन की दिशा ही बदल दी परन्तु कुछ वर्ष बाद ये प्रधानाध्यापक होकर प्रयाग चले गये । पं० ललिताप्रसाद जी डबराल
इसके बाद प्राचार्य डवराल जी पधारे । आप व्याकरणाचार्य, काव्यतीर्थ, वेदान्त-वाचस्पति हैं । यह उन व्यक्तियों में से हैं जिनसे स्वयं उपाधियां गौरवान्वित होती हैं । आप उन दो चार निरीह निरहंकार मनुष्यों में से हैं जो अपने ग्रन्थों में अपना नाम नहीं देते, अपने नाम के साथ उपाधि नहीं जोड़ते
और अपने चरण छुपाने में संकोच करते हैं । इन्हींके दर्शन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ । 'नैषधीय' पढ़ाते पढाते आप नाचने लगते और खण्डन खण्डकाव्य का भाष्य करते समय अद्भुत वक्तृत्वशक्ति का परिचय देते । इनका नाम सुनकर खुर्जा, बुलन्दशहर, छपरा, गढ़वाल बांदा, आदि दूर दूर स्थानों के
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