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वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ
सभी क्षेत्रोंका घनफल चतुगुणित क्रमसे निश्चित आता है ( ऐसा मानकर ) सबसे अंतिम घनफल को चारसे गुणा करने तथा एक कम उतने ( तीन ) से ही भाग देने पर ६५ १६ ( ६५११ ) आता है । (तः) अधोलोकके समस्त क्षेत्रों का घनफल १०६ (१०४२२५ ) होता है । २
गणितशास्त्र के इतिहासकी दृष्टिसे अधोलोकके इस विवरण में निम्न तथ्य बड़े महत्व के हैं
(१) कोई भी वक्र सीमाओं से युक्त क्षेत्र सीधी सीमायुक्त क्षेत्रों में ऐसे ढंग से विभाजित किया जा सकता है कि क्षेत्रफल पर कोई भी प्रभाव न पड़े। विशेषकर यदि अन्तःशून्य ( पोला ) शंक्वाकार ( आकृति २ ) को सीधी सीमा युक्त ( श्राकृति ३) में परिवर्तित किया जाय तो फलमें कोई परिवर्तन नहीं होता है ।
(२) स्पष्ट प्रदर्शन अथवा सिद्धिके लिए आकृति निर्माणका सिद्धान्त सत्य माना गया था । अब सद तथा आबा सा दा ( आकृति ३ ) चतुष्फलकों के घनफल निकालने में इस सिद्धान्तका विशेष रूपसे प्रयोग हुआ है ।
अ (३) ज्यामितिकी श्रेणियोंमें स= र<। १ - र न +
स = अ+अर+अर±+... अर (४) " का मूल्य = = 77
क्षेत्रमिति के गुरुओं की साधक रचना
ऊपरके निदर्शनोंमें उपयुक्त श्राकृति परिवर्तन तथा रचना के सिद्धान्तोंका भारतीय क्षेत्रमिति में प्रचलित तथा उपयुक्त निम्न गुरुश्रोंके निकालने में उपयोग किया जा सकता है। क्षेत्रफल - १ - परिभाषा - लम्बाई में चौड़ाईका गुणा करनेपर आायतका क्षेत्रफल आता है ।
२- अाधारकी लम्बाई में ऊंचाईका गुणा करनेपर समानान्तर चतुर्भुजका क्षेत्रफल अ. ता है । ( श्राकृति सं. ५ )
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का गुरू स्वयंसिद्ध मान लिया गया था । स्वीकार कर लिया गया था ।
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प्रकृति ५
प्रकृति ६
दाणित्ति
१ एवमुपण्णासेस खेत्तफल मेलावण विहाणं वुच्चदे । तं जहा सम्म खेत्तफलाणि चउगुण कमेण अवट्ठिकादूण तत्थ अंतिम खेत्तफलं चउहिं गुणिय रूवूणं काऊग तिगुणिद छेद्देण ओत्रदेि एत्तियं होई ६५१३३६ (६५) । अधोलोगस्य सव्वखेत्त फल समासो १०६ ३६६ (१०४३६३) ।” ( पृ० १६ )
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