________________
खजुराहाक खंडहर श्री अम्बिका प्रसाद दिव्य, एम० ए०
खजुराहा बुन्देलखण्ड के अंतर्गत छतरपुर राज्यमें, एकान्त जंगलमें बसा मुत्रा एक छोटा सा ग्राम है, जिसमें अधिकसे अधिक दो तीन सौ घर होंगे । परन्तु यह छोटा सा ग्राम किसी समय चन्देल राजाओं को राजधानी था। इसमें उनके समय के कुछ खंडहर आज भी खड़े हैं। हन खंडहरोंको देखकर चन्देलोंकी समृद्धि तथा वैभव के जैसे विशाल चित्र हमारी कल्पनामें आते हैं वैसे आज बुन्देलखण्ड में कहीं भी देखनेको नहीं मिलते। अतः चन्देलोंके विषय में कुछ जाननेकी एक सहज जिज्ञासा हमारे हृदयमें जाग उठती है।
चन्देलोंका राज्य जैसा कि प्राचीन शिलालेखोंसे पता चलता है, नवीं शताब्दी से १३ वीं शताब्दी तक रहा । इन्होंने अपनेको चन्देल्ल या चन्द्रेल कहा है और चन्द्रात्रेय मुनिका वंशज बतलाया है । चन्द्रात्रेय मुनिका जन्न ब्रह्मान्द्र मुनि अथवा ब्रह्मासे हश्रा कहा जाता है। चन्द्रात्रेयके वंशमें अनेक राजाओंको परम्परामें एक नन्नुकका जन्म हुआ। नन्नुकने ८३१ ई. के लगभग चन्देल वंशकी नींव डाली। आगे चलकर इस वंशमें एकसे एक प्रतापी तथा शक्तिशाली राजा हुए । उनकी सूची इस प्रकार है-- नन्नुक, वाक्यपति, जयशक्ति, रोहित, हर्ष, यशोवर्मन, धंग, गंड, विद्याधर, विजयपाल, कीर्तिवर्मन, देववर्मन, सल्लक्षणवर्मन, जयवर्मन, पृथ्वीवर्मदेव, परमादिदेव तथा त्रैलोक्य वर्मदेव । इनमें से जयशक्ति, हर्ष, यशोवर्मन, धंग, गंड तथा विद्याधर के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं, क्योंकि इनके समयमें खजुराहाकी विशेष उन्नति हुई।
जयशक्ति और विजयशक्ति दो भाई थे। महोवामें जो एक शिला लेख मिला है, उसमें इन्हे जेजा और बेजा करके लिखा है। जयशक्तिको जेजक और विजय शक्तिको विजक भी कहा गया है। उपरोक्त शिला लेखसे ज्ञात होता है कि जेजकके कारण ही इस प्रान्तका जिसे आज बुन्देलखण्ड कहते हैं, 'जेजाक भुक्ति' नाम पड़ा। यही नाम आगे चलकर जुझोप मात्र रह गया।
हर्ष-यह इस वंश का छटा शासक था। इसने अपने राज्यको कन्नौजके प्रतिहारोंकी पराधीनतासे छुड़ाकर स्वतंत्र घोषित किया, कन्नौजके राजा क्षितिपाल देवको भी राष्ट्रकूट वंशके राजा इन्द्र तृतीयके चुगुलसे छुड़ाया।
५२७