Book Title: Varni Abhinandan Granth
Author(s): Khushalchandra Gorawala
Publisher: Varni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti

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Page 630
________________ बुन्देलखण्डका स्त्री- समाज श्री राधाचरण गोस्वामी एम. ए., एल एल. बी. पुरातन सभ्यता की प्रतीक धर्म और आचार की मंजुल मूर्ति, सरलता और सहनशीलता की साकार प्रतिमा, उत्सवरता, प्रकृति- प्रिया, विनोदनी, रूढ़िवादिनी, विश्वासिनी, कर्मरता- - यह है खण्ड की नारी । वेशभूषा - दतिया, झांसी और समथर व आस-पास की स्त्रियां लंहगा पहनती हैं और ओढ़नी श्रोती हैं, उच्च वर्णों में इसपर भी चद्दर लपेटती हैं। उसका एक छोर चलने में पंखा सा कलात्मक रूप से हिलता है और अवगुंठन के सम्हालने में संलग्न उंगलियां पद-क्रमण और शरीर-रेखा ( contours ) ही वर्ण और वयस का परिचय देती हैं । विजावर, पन्ना, चरखारी, छतरपुर और इसके आसपास केवल धोती पहनने की प्रथा है । इसमें दोनों लांघ बांधी जाती हैं। उत्सव में जब बुन्देलखंड की वधू सुसज्जित होती है तो उसकी वस्त्राभूषण - कला निखर जाती है । पैरों में महावर लगा, पैरों की उगलियों में चुटकी और अगुष्ठ में छल्ला पहने, लहरों वाले घांघरा पर बुंदकियों वाली चुनरी ओढ़े, कंचुकी से वक्ष कसे, उसपर लहराती हुई सतलरी लल्लरी गोरे गले में काले पोत की छटा को बढ़ाता है। सरपर सीसफूल, वंदिनी पहने वह आज भी जायसी की " पद्मिनी " की होड़ करती है । आखों में यहां की बाला इतना बारीक काजल लगाती हैं कि वह कजरारी आखें कुछ काल में चुन सा लेती हैं । उच्चवर्ण के कुलों में कहीं कहीं अनुपम सौन्दर्य देखने को मिलता है । यहां के एक प्रसिद्ध राजघराने की राजकुमारी ने जो आसाम में व्याही गयी थी कुछ साल हुए विश्वरूप प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार पाया था । धर्म और उत्सव - बुन्देलखंड की नारी पर आर्य और अनार्य धर्म, प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय सभ्यता की अमिट छाप है । उसके उदार वक्षस्थल में वैष्णव, शैव, शाक्त और जैन मत मतान्तरों का द्रोह नहीं और न है मन्दिर दरगाह का भेद । श्रादिम जाति के पूज्य चबूतरे और पाषाणखण्ड भी उसके कोमल हृदयको उसी तरह द्रवित करते हैं जैसे आर्यों के देवता और पीर का मकबरा । प्राचीन अर्वाचीन दर्शन शास्त्रों की वह पंडित नहीं, पर उसके हृदय में है वह अगाध विश्वास जो सभी धर्मों ५४३

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