________________
बुन्देलखण्डका स्त्री-समाज कथा मैंने कई साल हुए विजावरमें ही सुनी थी। कहा जाता है कि जंगल में एक डाकूने उसे घेर लिया
और बलात्कार करना चाहा। उसने कहा कि कपड़े उतार लो मैं भोगको तैयार हूं । जब डाकू कपड़े उतारने लगा उस समय उसकी तलवार जमीन पर थी और दोनों हाथ व्यस्त थे तथा क्षण भरको अांखें बन्द थीं। साहसी लड़कीने झपटकर तलवार उठायी, खोलकर वार किया और डाकूको खत्म कर दिया । कौन इस वीरताकी प्रशंसा न करेगा । ये हैं बुन्देलखंडकी वीरबालाएं ।
विवाह एवं सामाजिक स्थिति
बुन्देलखण्डकी नारीको समाजने बुरी तरह दलित कर रखा है। सदियोंके अत्याचार और प्रपीड़नने उसकी वृत्तियोंको विकृत, इच्छाओंको सीमित और विकासको कुंठित बना रखा है। बालिकाओं को बहुत ही जल्दी ब्याह दिया जाता है। प्रायः गावोंमें अच्छे घरोंमें दश वर्ष की भी लड़की ब्याह दी जाती है । और फिर कथित उच्च वर्गों में विधवा विवाह भी नहीं होता। इन सबसे होने वाली जीवनकी हाहाकारका वह कब तक सामना करे ? पतन भी होता है और समाजकी सुकुमार वेलि स्नेहके जलके विना असमय ही मुरझा जाती है । उसकी आह समाजके हृदयका घुन बन बैठी है । श्वसुरके रहते वधू अपने पतिसे जी भर हंस खेल भी नहीं सकती और सास बनने तक उसके अरमान मर जाते हैं फिर वह पुत्रवधू पर यन्त्रणाएं करके अपने यौवनकी आहत कामनाओंका प्रतिशोध लेती है । ननद भाभीको सदाचारका पाठ पढ़ाती है, जेठकी स्त्री नीति और घरकी बड़ी बूढ़ी धर्मकी शिक्षा देती हैं। फिर भी स्वभावसे बुन्देलखंड की बाला विनोदिनी है। वह इन सबकी अभ्यस्त सी है और उसकी स्वाभाविक हंसी पर यह सब यातनाएं कम प्रभाव डालती हैं। प्रकतिका उसे यह वरदान हैं कि रूखा सूखा खाकर वह स्वस्थ रहती है। कठोर परिश्रम कर थोड़ा विश्राम पाकर प्रसन्न होती है और साधारण शृगारके उपचारोंसे हो सौन्दर्यको विभूषित करती है। समाजमें कुमारी रहने पर माता पिताके यहां लड़की लाड़-चावसे रक्खी जाती है और वैवाहिक जीवनकी अपेक्षा स्वतन्त्र भी रहती है। घरकी वधुअोंसे वह काम काज सीखती हैं और नन्ही सी उम्रमें ही विवाह होने पर प्राय: वे समयसे पूर्व ही वधू बन जाती है । पर विवाहके उपरान्त तीन या पांच साल में प्रायः द्विरागमन होता है। इस कारण वह किशोर होते होते ही वास्तव में प्रणयी जीवन बितानेको अपने पतिके घर जाती है। अन्ताराष्ट्रीय समितिने जिसका पहले प्रधान कार्यालय जिनेवामें था, नारी विषयक खोजकी एक उपसमिति बनायी थी। उसने अपना निर्णय बड़े अनुसन्धानके उपरान्त दिया था कि प्रौढ़ विवाह की अपेक्षा बालविवाह जीवनको अधिक सुखी बनाता है। पर अति हर एक वस्तुकी बुरी होती है । बुन्देलखंडमें बालविवाह भी उसी अति पर पहुंच चुका है।
उच्चवर्णकी स्त्रियों में सामाजिक अधिकार निम्नवर्णकी स्त्रियों की अपेक्षा कम है । उच्चवर्णकी स्त्री अब भी मनु महाराजकी आज्ञाके अनुसार कुमारी अवस्थामें पिताके शासन में, विवाहित होने पर पतिके और
५४७