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खजुराहाके खंडहर परन्तु अब वे सबकी सब लापता हैं । केवल खाने खाली पड़े हुए दिखलायी देते हैं । हां एक बड़े खानेमें तीन मूर्तियां पड़ी हैं, उनसे यह बात सिद्ध होती है कि यह मन्दिर ६४ योगनियोंका ही था । इन मूर्तियों में से एक महिषा-मर्दिनीकी है, दूसरी महेश्वरी तथा तीसरी ब्रह्माणीकी। कहा जाता है खजुराहाके मन्दिरोमें यह मन्दिर सबसे अधिक प्राचीन है।
कन्दरिया मन्दिर- यह मन्दिर चौसठ योगनियोंके मन्दिरसे कुछ ही दूरी पर उत्तरकी अोर स्थित है । यह खजुराहाके सभी मन्दिरोंसे विशाल और भव्य है। यह ईसाकी १० वीं शताब्दीका बना हुआ है। पहले पंचायतन शैलीका था, परन्तु चारों कोने के सहायक मन्दिरोंका अब नाम निशान भी नहीं । यह बाहर भीतर, देवी देवताओं तथा अप्सरात्रोंकी विभिन्न मूर्तियोंसे आच्छादित है।
देवी जगदम्बाका मन्दिर-यह भी उपरोक्त मन्दिरके समीप ही है और उसी शैलीका बना हुआ था; परन्तु इसके भी सहायक मन्दिरोंका अब पता नहीं। इसकी सजावट भी कन्दरिया मन्दिरके समान ही कलापूर्ण तथा दर्शनीय है। यह मन्दिर पहले विष्णु भगवान्की स्थापनाके लिए बनवाया गया था। परन्तु आज विष्णुके स्थान पर उनको अधांगिनी श्री लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित है जिसे लोग अज्ञान वश काली अथवा देवी जगदम्बाके नामसे पूजते हैं ।
चित्रगुप्तका मन्दिर—यह जगदम्बाके मन्दिरसे कुछ ही दूरीपर उत्तरकी अोर स्थित है । श्राकार प्रकारमें भी उपरोक्त मन्दिरके समान ही है। इसके गर्भमन्दिरमें सूर्य की एक पांच फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है।
विश्वनाथ मन्दिर-यह मन्दिर भी चित्रगुप्तके मन्दिर के समीप ही है । यद्यपि यह कन्दरिया मन्दिरसे कुछ छोटा है परन्तु रूप रेखामें उसीके समान हैं । यह भी पंचायतन शैलीका बना हुआ था; परन्तु सहायक मन्दिरोंमें से दो लापता है। इसकी सजावट भी अन्य मन्दिरोंके समान ही कलापूर्ण है। इसके मंडपके अन्दर दो शिलालेख खुदे हुए हैं। एक विक्रम सम्वत १०५६ का है दूसरा १०५८ का । १०५६ के शिलालेखमें नन्नुकसे लेकर धंग तक चन्देल राजाओंकी नामावली दी गयी है। इसी लेखसे पता चलता है कि यह मन्दिर धंगका बनवाया हुआ था, और इसमें, हरे मणिका शिवलिंग स्थापित किया गया था, परन्तु अब उस शिवलिंगका पता नहीं। दूसरा शिलालेख किसी अन्य मन्दिरके ढीहे से लाकर रख दिया गया है, जिसे वैद्यनाथका मन्दिर कहते हैं ।
लक्ष्मणजीका मन्दिर-यह भी समीप ही है और आकार प्रकारमें विश्वनाथके मन्दिरके समान ही है । यह भी पंचायतन शैलीका बना हुआ है। सौभाग्यसे इसके चारों सहायक मन्दिर अब भी खड़े हैं। इसकी मूर्तियां विशेष सुन्दर और कलापूर्ण हैं। इसके मंडपके अन्दर भी एक शिलालेख पड़ा है जिससे पता चलता है कि यह धंगके पिता यशोवर्मनका बनवाया हुआ था। इसके अन्दर विष्णुकी जो मूर्ति
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