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बुदेलखंड में नौ वर्ष
सबके सब मिथ्या थे। सत्य है वह लोक, जिसके बीच, उस दिनसे आज तक, पूरे नौ वर्ष और कुछ महीने में रहता आया हूं। जिनके शरीरमें मेरा शरीर जिसको आत्मामें मेरी आत्मा, सांसमें सांस, घुल मिल गयी है । जिसकी कुरूपतामें मेरे जीवनका चिद्रूप समा गया है । एक रंग, एक रस हो गया है । मैं उसी बुन्देलखंडका स्वरुप खीचूंगा। भौगोलिक मानचित्र पर छपे हुए एक भूमिखण्ड और स्वप्न निर्माताओं के भावी बुन्देलखंडका नहीं। 'जीवनकी छोटी सी लौ'
____ अभी, जब कि मैं यह लिख रहा हूं, दिनके दो बजे हैं । कोई बीस फीट लंबा दस फीट चौड़ा कमरा है। आठ फीट ऊंची दीवारों पर पांच फीट तक सील चढ़ी हुई है। भिन्न-भिन्न प्रकारकी दुर्गन्धसे कमरा महक रहा है । ऊपर छत पर असंख्य मकड़ियोंके जाले लगे हुए हैं । हर तीसरे दिन मैं उन्हें मिटाकर साफ करता हूं। किन्तु रातभर में वे ज्योंके त्यों तन जाते हैं। फर्शकी एक अोर दरी बिछा कर मैं यह लिख रहा हूं। दूसरे कोनेमें मेरे दो बच्चे और उनकी जननी एक दरी पर सोये हुए हैं । कमरा प्रातःकाल बुहारा गया था। किन्तु अभी तक उसमें कूड़ेका ढेर बिखर गया है। बच्चोंके मुह पर मक्खियां मंडरा रही हैं । पत्नीके शरीर पर जो धोती है वह मैली हो गयी हैधोबियोंने दो-याना कपड़ा धुलाई करदी है, और सनलाइट साबुन साढ़े सात आनेमें आने लगा है। मुझे पचास रुपये तनखा मिलती है । मैं एक भारतीय विश्वविद्यालयका स्नातक हूं; अध्यापक हूं। बुन्देलखंडके सैकड़ों-हजारों बालकों को नागरिक बनानेका ठेकेदार हूं। मुझे लोग राष्ट्र निर्माता (नेशनबिल्डर) कहा करते हैं।
मैं यह इस लिए लिख रहा हूं कि मैं अपने आप को बुन्देलखण्डी समझने लगा हूं। यहां का जल, यहां की वायु, मेरी रग रगमें समा चुकी है। मेरे दोनों बच्चे यहां की धूलमें लिपट-लिपट कर पनप रहे हैं । मैं अपने आप को एक इकाई मानता हूं इस जनपद की । मेरा जीवन यहां के जीवन का प्रतीक है। मेरा घर वहां के घरों की भांति, और मेरा परिवार वहां के समाज का प्रतिबिम्ब है । इसीलिए मैंने उसका वर्णन किया है।
मेरे मकान के बाहर जो गली है, उसमें दानों और गन्दे पानीके लिए नालियां नहीं हैं, लोगों के शरीरों की नहावन, गन्दे कपड़ों की धोवन, पेशाब और पाखाना इस गली की जमीनमें पिछली डेढ़ शताब्दी से रसता चला जा रहा है। सोल के रूपमें वही मकानों की निचली मञ्जिलों पर चढ़ आया है। पिछले नौ वर्षों में मैंने इसी एक छोटेसे मुहल्लेमें चौदह बच्चों को टाइफाइड और चेचकसे मरते देखा है। मलेरियासे लोग मरते कम हैं। नहीं तो इस मुहल्ले में अंगुलियों पर गिनाने को बच्चे नहीं मिलते । इन. चौदह अकाल मृत्यु प्राप्त मानव-शिशुओंमें मेरी एक बहिन और भाई भी शामिल हैं। बहिन पांच वर्ष की