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वर्णी- अभिनन्दन ग्रन्थ
थी और भाई ढाई वर्ष का । दोनों भले चंगे थे। टाइफाईड हुआ और मर गये । इसलिए तो मैं कहता हूं कि मैं बुन्देलखण्डी हूं । गुलाब के फूलों की भांति खिले हुए अपने दो निरपराध भाई-बहिनों का मैंने बुन्देलखण्ड की सन्तप्त आत्मा को बलि चढ़ा दिया । मेरे आंसू बाकी बारह बच्चों के माता-पिता के आंसूत्रों के साथ मिलकर बहे थे । फिर कौन कह सकता है कि मैं बुन्देलखण्डी नहीं हूं ?
एक मेरे मुहल्ले में पिछले नौ वर्षों में चौदह बच्चे मरे । मेरी गली बहुत छोटी हैं ! टीकमगढ़ में ऐसी कमसे कम दो सौ गलियां होंगी । चौदह को दो सौ से गुणा करने पर दो हजार आठ सौ होते हैं । नौ वर्ष में अठ्ठाईस सौ बच्चे । एक वर्ष में करीब तीन सौ ?
मा नः स्तोके तनये, मान आयुषि मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः,
मा नो वीरान् रुद्रभामिनी वधीः हविष्मन्तः सदमित्वा हवामहे ।
आदिम पुरुषने भगवान् रुद्रसे यह प्रार्थना की थी— 'हे रुद्र ! मेरे नन्हे नन्हे बच्चों पर रोष न करें । मेरे गाय, बैल, मेरे घोड़ा पर क्रुद्ध न हों । मेरे भाई बहिनों पर कृपा दृष्टि रखें । वास्तविक मनुष्य की इससे अधिक अभिलाषा नहीं होती । उसके बाल बच्चे सुखी रहें, स्वस्थ फूलोंसे खिले रहें । बस, इससे अधिक जो चाहता है, वह चोर है । वह दूसरे की अभिलाषित आवश्यकताओं की चोरी करता है । वह दूसरेके बच्चों को भूखों मारता है । वह हजारों लाखों माताओं की गोद समय में ही रिक्त कर देता है । वह प्रकृति की इस सुन्दर सृष्टी पर टाइफाइड, चेचक, प्लेग, हैजेके कीटाणुओं को बरसाता है ।
टीकमगढ़ के बच्चों पर रुद्रके इस कोप को किसने बुलाया ? किसने उनके जीवित रहने के एक मात्र अधिकार को भी छीन लिया ? बच्चे समाज का सौन्दर्य हैं, उसकी कोमलता हैं। जिस समाज में बच्चे मरते हैं, वह ठूंठ है, जो स्वयं जलता है और दूसरों को जलाता है । उसे उखाड़ फेंकना चाहिए, नष्टकर देना चाहिए ।
जीवन लौ की दूसरी भभक
मेरे पड़ोस में एक परिवार रहता है । उसे परिवार कैसे कहूं । स्त्री पुरुष का एक जोड़ा । पुरुष सुनारी करता है या बढ़ईगिरी, मैंने यह जानने का प्रयत्न कभी नहीं किया। पिछले नौ बरसों से मैं उन्हें देखता आ रहा हूं। पुरुष डेढ पसलो का है, और स्त्री वायुसे फूलकर रक्तहीन मांसकी एक गुब्वारानुमा पुतला बन गयी है। दोनों सदा अस्वस्थ रहा करते हैं। बरसों से ज्वार खाते आ रहे हैं। तीजत्योहार के दिन मीठे तेल में उनके घर गेहूं की पूड़ियां अवश्य बन जाती है । स्त्रीकी कोई सन्तान नहीं है । किन्तु वह बांझ भी नहीं है । सालमें कम से कम एक बार उसे स्राव हो जाता है। तीन-तीन चार चार महिने तक पेट में परिवर्धित कर अन्तमें आकृतिहीन एक मांसपिंड को वह नारी जन्म देती है। और वर्षके
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