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बुंदेलखंड में नौ वर्ष श्री शोभाचन्द्र जोशी
सन् ११३८ के अक्टूबर महीने में मैं टीकमगढ़ आया था । बे दिन बेकारी के थे। पूरे पांच वर्ष संयुक्त प्रान्त की धूल फांकने पर भी मुझे नौकरी नहीं मिली। न जाने कितनी निराशा, अपमान, लांछना और फाकेकशी का मुझे शिकार बनना पड़ा। जीवन एक दुःसह भार बन गया था । अलिफलैला के अस्तिशेष बुड्ढे की भांति उसे कंधों से उतार कर फेंक देने की शक्ति भी मुझमें नही थी और उसे लिये-लिये घसीटने की भी अब अधिक आकांक्षा नहीं रह गयी थी, विस्तृति की नकाब पहने हुए बेकारी के वे पांच वर्ष, प्रेतच्छायाओं की भांति, मेरी नींद में मुझे आज भी चौंका देते हैं । कभी कभी लगता है कि सुख और सन्तोष को जिस इमारत को मैं अपने चारों ओर खड़ा करना चाहता हूं, वह अर्ध. निर्मित हो मुझे लेकर भूमिसात् न हो जाय ।
टीकमगढ़में मुझे नौकरी मिल गयी । कुछ दिनोंके लिए रहने को राज्यका अतिथिगृह मिला । अच्छा अन्न, अच्छे वस्त्र, अच्छ। घर, -विजली, मोटरें, संगीत, नृत्य । उन दिनों दुर्गापूजाका उत्सव चल रहा था। अतिथिगृहमें राज कवियों और कोकिलकंठी वारागंनाओंका जमघट लगा हुआ था। कविता और सुर, रस और धनि, वाणो अर सौन्दर्य का मनोहर सम्मेलन था। मुझे लगा कि मेरे पापोंकी अवधि बीत गयी। पुण्यों का भोग प्रारम्भ हो गया। यह स्वर्ग था। वह नरक था, जिसे मैं पीछे छोड़ आया।
कई मित्र भी बन गये थे। आज जो लोग मेरे मित्र है, वे नहीं। वे तो स्वप्नोंके साथी थे। जब तक स्वप्न चले, वे भी रहे । स्वप्न टूटे तो उनकी मैत्री भी टूट गयी। सांयकाल को अतिथि निवासमें चले आया करते थे। रसज्ञ जन थे। कविता और सौन्दर्य परखना जानते थे । 'व्हाइट हार्स व्हिस्की', और देशी हरे के गुण दोषों का विवेचन कर सकते थे 'क्रेवन ए' सिगरेट पीनेसे किस प्रकार मनुष्य दीर्घायु हो जाता है अोर तेंडूके पत्तोंकी बनी बीड़ी पीकर क्यों अकाल मृत्यु प्राप्त होती है-इस तथ्यका उन्हें आश्चर्यजनक ज्ञान था।
उन दिनों टीकमगढ़में पानी मंहगा था। शराब और पेट्रोल सस्ते थे। मोटरें बैलगाड़ियों से ६८