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खजुराहाके खंडहर । इस मन्दिरकी सजावटमें वैदिक मूर्तियां भी बनायी गयी हैं । और यह चीज देखने योग्य हैं | यह मन्दिर ९४५ ई० के लगभगका बना हुआ है। इसके पास ही एक शान्तिनाथका मन्दिर है ।
दक्षिण समूहमें दो ही मन्दिर हैं -- एक दूल्हादेवका तथा दूसरा जतकारी का
दूल्हादेवका मन्दिर – खजुराह के मन्दिरोंमें यह मन्दिर सबसे सुन्दर माना जाता है । इसे नीलकंठका मन्दिर भी कहते हैं । यह दूल्हादेवका मन्दिर क्यों कहलाया ? कहा जाता है कि एक बारात इसके समीपसे गुजर रही थी । अचानक ही दूल्हा पालकी परसे गिर पड़ा और मर गया । वह भूत हुआ और उसी समय से यह मन्दिर दूल्हादेवका मन्दिर कहा जाने लगा ।
जतकारो मन्दिर - र-- यह मन्दिर जतकारी ग्रामसे करीब तीन फलोंगकी दूरीपर दक्षिणकी ओर है। इसमें विष्णुकी एक विशाल मूर्ति जो नौ फोट ऊंची है, स्थापित है |
इन मन्दिरों के अतिरिक्त और भी कई छोटे छोटे मन्दिर तथा अन्य इमारतोंके खंडहर पड़े हैं, जिनमें प्रत्येक के पीछे उस भव्य अतीत युगका महत्त्वपूर्ण इतिहास छिपा हुआ है 1
इन मन्दिरोंके शिल्प और स्थापत्य कला के अतिरिक्त मूर्तियों के विषय भी विशेष अध्ययन के योग्य है। यहां जीवनकी अनेक झांकियोंके साथ शृंगारको ही विशेष स्थान दिया गया है और शृंगार की मूर्तियां ही हमारी आंखको सबसे पहले आकृष्ट करती हैं। देवी देवताओं की सौम्य मूर्तियां तो इनके सामने दब ही जाती हैं। इनमें कोककी अनेक कलाओं का खुलकर प्रदर्शन किया गया है। श्लील और अश्लीलकी उस समय क्या परिभाषा रही होगी कुछ कहा नहीं जा सकता । कुछ मुखसे यह भी बात सुनने को मिलती हैं कि इस प्रकारकी नग्न और अश्लील मूर्तियों के स्थापनसे इमारतों पर बिजली नहीं गिरती 1 कुछ इसे वाम मार्गियों का खेल बताते हैं ।
जो हो, यह कारीगरी आज हमारे कौतूहल तथा अध्ययनकी चीज बनी हुई है । उस समय पुरुषके हृदय में स्त्रीका कैसा रूप समाया हुआ था, स्त्रीका समाजमें अपना क्या स्थान था, उनके नैतिक जीवनकी क्या परिभाषा थी, तथा उसके नारीत्वके मानरक्षाकी क्या प्रायोजना थी, ये सब बातें हमारे सामने प्रकट हो जाती हैं ।
खजुराहाकी स्त्रियां अपार सुंदरी, अचल यौवन शृंगार प्रिया तथा अनंगोपासिका है। वे न क्षीण काय हैं न स्थूल । उनकी शरीर रचना स्वस्थ और सुडौल है । उनके अंग प्रत्यंग एक विशेष सांचे में ढले हुए से प्रतीत होते हैं । वे एक निश्चित शास्त्र के अनुकूल बनाये गये हैं, प्रकृति जैसी अनियमितता उनमें नहीं । उनकी
कुटियां धनुषाकार कानों तक खिंची हुई रेखाएं मात्र हैं । उनकी श्रांखों में यौवन अनंग और कटाक्ष हैं । वे रूपगर्विताके समान सदा अपने ही रूपको देखती और सम्हालनी हुई सी प्रतीत होती हैं। उनकी अन्तरतरंगे
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