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मातृभूमिके चरणोंमें विन्ध्यप्रदेशका दान से हमारे साहित्यके एक महत्वपूर्ण अंगको पूर्ति हो सकती है। इसके सिवा विन्ध्यप्रदेशमें कितने ही प्राचीन स्थल ऐसे विद्यमान हैं, जहां खुदाई होने पर बहुत सी ऐतिहासिक सामग्रीका पता लगेगा। ग्राम-साहित्य
विन्ध्यप्रदेशके अनेक ग्राम रेलकी लाइन तथा आधुनिक सभ्यतासे बहुत दूर पड़ गये हैं । जहां इससे हानि हुई है वहां कुछ लाभ भी हुआ है । इस जनपद के ग्राम-साहित्यका जायका ज्यों का त्यों सुरक्षित है । इधर इस प्रांत के ग्राम-साहित्य का जो संग्रह हमने देखा है, उससे हमें आश्चर्य के साथ हर्ष भी हुआ है
और कुछ ईर्ष्या भी। ईर्ष्या इसलिए कि व्रजके ग्राम-साहित्यको हम इस प्रांत के ग्राम-साहित्यसे बहुत पिछड़ा हुआ पाते हैं। अन्तिम निर्णय तो तब होगा जब व्रजके ग्राम-साहित्यका पूर्ण संग्रह हो जाय, पर अभी तो हमें ईमानदारीके साथ यह बात स्वीकार करनी पड़ेगो कि विन्ध्यप्रदेश व्रजको बहुत पीछे छोड़ गया है । कहीं-कहीं तो व्रज के ग्रामगीत और रसियोंका रंग इतना गहरा हो गया है कि वह घासलेटकी सीमा तक पहुंच गया है।
___मुहाविरों में तो बाजी बुन्देलीके हाथ रहती दिखती है। "अपने काजै सौतके घर जाने परत" में जो माधुर्य है वह “अपने मतलबके लिये गधेको बाप बनाने" के असांस्कृतिक मुहाविरेमें कहां रखा है ।
इस प्रदेशकी कहानियां भी अपना एक अलग स्वाद रखती हैं। श्री शिवसहायजी चतुर्वेदी द्वारा संगृहीत कहानियोंको पाठक 'मधुकर में पढ़ ही चुके हैं। अपने व्रजवासी भाइयोंसे हमारा अाग्रह है कि वे शीघ्रातिशीघ्र उक्त जनपदके ग्राम-साहित्यका संग्रह प्रकाशित करदें।
आधुनिक सभ्यताके उपकरणोंके आक्रमण से ग्रामीण साहित्यकी कितनी हानि हो रही है, इसका अनुमान अब हम करते हैं। अभी उस दिन प्रातःकालमें एक ग्राममें चक्की पीसतो हुई बुढियाके मुंहसे सुना था “सुनौरी परोसिन गुइयां, जे बारे लाला मानत नइयां” उस समय हम सोचने लगे कि मिल की चक्कियां खुल गयी हैं और नगरके निकट बसे हुए ग्रामोंकी औरतें भी अब मिलों पर ही आटा पिसवाती हैं, इसलिए अब चक्की के गीत भी थोड़े दिनके मेहमान हैं ! मिलकी चक्की-पूतना बालगोपालोंके मधुर उराहनोंको भला कब छोड़ने वाली है ! कृषि विषयक अनुसन्धान
शिक्षा सम्बन्धी अथवा राजनैतिक क्षेत्र में विन्ध्यप्रदेश निकट भविष्यमें कोई महान कार्य कर सकेगा इसकी सम्भावना कम ही है। वैसे इस वसुन्धराके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। बहुत सम्भव है कि इस समय किसी ग्रामीण मिडिल स्कूल अथवा किसी हाई स्कूल में पढ़ने वाला क्षात्र आगे चलकर ऐसा निकले जो महान शिक्षा विशेषज्ञ अथवा देशनेता कहलावे और जिसे भारतव्यापी कीर्ति प्राप्त हो, पर हम यहां सम्भव असम्भवका तर्क पेश नहीं कर रहे हैं । वास्तविक स्थिति यह है कि विन्ध्यप्रदेश शिक्षा