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भारतीय ज्योतिषके इतिहासके जैन-स्रोत ३५५/४५२ आता है । अब हमें लोकके अधोभागका अायतन निकालना है अतः क्षेत्रफल ( ३५५/४५२) में सात राजका गुणा करनेपर वह ५२२५ होगा (श्राकति २ १
पुनः चौदह राजु लम्बे लोकक्षेत्र में से सूचीको निकालकर मध्य लोकके पास उसके दो भाग कर दें। उनमें से नीचे के भागको लेकर ऊपरसे (चित्त ) पसारने पर वह क्षेत्र सूपाके आकारका होता है। इस सूर्पाकार क्षेत्रका ऊपरका विस्तार (लम्बाई ) ३५3 प्रमाण है । तथा तलको लम्बाई २१५१३ है । इसे सात राजु लम्बे मुख-विस्तार द्वारा नीचेकी
ओर काटनेपर दो त्रिभुज तथा एक आयत चतुरस्राकार क्षेत्र बन जाते हैं।
___ इन तीन क्षेत्रों में से बीचके आयत चतुरस्र क्षेत्रका आयतन निकालते हैं। इसकी ऊंचाई सात राजु है । लम्बाई ३५४ है। मुखमें बाहुल्य आकाशके एक प्रदेश प्रमाण तथा तले (नीचे) तीन राजु प्रमाण है, फलतः मुख विस्तारको सात राजु तथा तल विस्तारके श्राधे (डेढ़े राजु) से गुणा करनेपर मध्यम भागका आयनत ३२३३३ होगा।
"अब शेष दो त्रिकोण क्षेत्र सात राजु ऊंचे, एक राजुके एकसौ तेरह भागोंमें अड़तालीस युक्त नौ राजु ( ९६५७) भुजा ( अाधार ) युक्त हैं । भुजा और कोटिका परिमाण कर्ण के अनुपातसे है ।
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१ "एदस्स मुहतिरिय वट्टस्स एगागास पदेस बाहलस्स परिओ एत्तिओ छोदि ३५४(३१३) इममद्वेणविक्खभद्ध ण गुणिदे एत्तियं होदि ३५१ (३५५) । अधोलोग भाग मिच्छामो त्ति सत्तहि रज्जूहिं गुणिदे खायफलमेत्तियं होदि ५४३५ (५३३५) । (पृ० १२)
२ 'पुणो णिस्सई खेत्त चोइस रज्जु आयद दो खंडागि करिय तत्थ हेछिम खंडं घेत्तृण उड्ढं पाटिय पसारिदे सुप्पखेत्त होऊग चेदि । तस्स मुहवित्थारो एत्तिओ होदि ३११ (३५५) । तलवित्थारो ऐतिओ होदि २२१५७ (२१११३) । एरथ मुहवित्थारेण सत्तरज्जु अपामणे छिंदिदे दो त्रिकोण खेत्तानि एयमायद चतुरस्स खेत्तं च होइ।"
(पृ० १२-१३) ३ 'तस्थ ताव मज्झिमखेत्तफल माणिज्जदे । एदस्स उस्सेहो सत्त रज्जूओ। विवखभो पुण एत्तिओ होदि ३१ (३५७)। मुहम्मि एगागासपदेस बाहलं तलम्मि तिण्णि रज्जु बाहल्लो त्ति सत्तहि रज्जूहि मुहवित्थार गुणिय तल बाहल्लद्धण गुणिदे मज्झिम खेत्तफलमेत्तियं होदि ३४३३ (३२३२३)।” (पृ० १३)