________________
भगवान् महावीरकी निर्वाणभूमि ऊपरके अवतरणसे भी स्पष्ट है कि वैशालीकी अोरसे पावा नगरी भोगनगर (बदरांव ) और कुशीनगरके बीच में पड़ती थी।
इन सब बातोंको ध्यानमें रखकर जो सड़क कुशीनगरसे वैशाली ( = वसाढ़ विहारके मुजफ्फरपुर जिलेमें ) की.ओर जाती है उसी पर पावा नगरीको ढूढ़ना चाहिये । इसी रास्ते पर कुशीनगरसे लगभग ९ मीलकी दूरी पर पूर्व-दक्षिण दिशामें सठियांव (फाजिल नगर) के डेढ़ मील विस्तृत भग्नावशेष हैं। ये अवशेष भोगनगर और कुशीनगरके बीचमें स्थित हैं । 'महापरिनिब्बान सुत्तान्त' से यह भी पता लगता है कि पावा और कुशीनगरके बीचमें दो छोटी नदियां बहती थीं। फाजिलनगर और कुशीनगरके बीचमें ये नदियां शुन्दा ( सोना ) और घाधी ( ककुत्था ) के रूपमें वर्तमान हैं। अतः सभी परिस्थितियों पर विचार करते हुए पावापुरीकी स्थिति फाजिलनगर ही निश्चित जान पड़ती है। फाजिलनगर नाम नया है और मुसलिम शासनके सयय पड़ा था। यहीं एक टीले पर एक मुसलमान फकीरकी समाधि भी बन गयी है । परन्तु इसके पास ही में विहारोंके भग्नावशेष और जैनमूर्तियोंके टुकड़े पाये जाते हैं। । ये अवशेष इस बातकी अोर संकेत करते हैं कि इस स्थानका सम्बन्ध बौद्ध और जैनधर्मोंसे था और इससे लगा हुआ एक विस्तृत नगर बसा था । दुर्भाग्यवश यहां खननकार्य अभी बिल्कुल नहीं हुआ है। खुदायी होनेपर इस स्थानका इतिहास अधिक स्पष्ट और निश्चित हो जायगा। अन्य मान्यताएं
कुछ विद्वानोंने पावाकी स्थिति अन्यत्र निश्चित करने की चेष्टा की है। कनिंगहमने पावाको वर्तमान पडरौना ( ज्याग्राफिकल डिक्शनरी श्राफ ऐं सियंट इंडिया ) और महापंडित राहुल सांकृत्यायनने पावाको रामकोला स्टेशनके पास 'पपउर' माना है। इन अभिन्नताओंमें थोड़ेसे शब्दसाम्यको छोड़कर
और कोई प्रमाण नहीं हैं । ये दोनों स्थान कुशीनगरसे पश्चिमोत्तर कपिलवस्तु और श्रावस्ती जानेवाले मार्गपर स्थित हैं और कुशीनगरसे वैशाली जानेवाले मार्गकी ठीक उलटी दिशामें हैं। अतः पडरौना
और पपउर पावा नहीं हो सकते । प्रसिद्ध विद्वान् स्व० डा० काशीप्रसाद जायसवालने बौद्धकालीन राज्योंकी स्थिति और भूगोल पर ध्यान न देकर अपने ग्रंथ 'हिन्दूपोलिटी' ( भाग १ पृ० ४८ ) में मल्लोंके राज्यको कुशीनगरसे पटनाके दक्षिण तक विस्तृत और अस्पष्ट रूपसे अाधुनिक पावाको मल्लोंकी राजधानी पावा मान लिया है जो सर्वथा भ्रान्त है। कतिपय मौलिक विरोध
वर्तमान पावाको मल्लोंकी राजधानी और भगवान् महावीरकी निर्वाण भूमि मान लेनेमें कई प्रबल आपत्तियां हैं
१. भगवान् बुद्ध और भगवान महावीर दोनोंके समकालीन मगधके राजा बिम्बसार और अजातशत्रु थे। मगध राज्य गंगाके दक्षिण सम्पूर्ण दक्षिण-विहार पर फैला था। उसकी राजधानी उस
२१३