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भारतीय ज्योतिषका पोषक जैन ज्योतिष
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हस्तीकी चाल और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र सिंहके आकार होता है यह नक्षत्रों की संस्थान सम्बन्धी प्रक्रिया वराहमिहिर के कालसे पूर्व की है । इनके पूर्व कहीं भी नक्षत्रोंके आकार की प्रक्रियाका उल्लेख नहीं है । इस प्रकारसे नक्षत्रोंके संस्थान, आसन, शयन आदिके सिद्धान्त जैनाचार्योंके द्वारा निर्मित होकर उत्तरोत्तर पल्लवित और पुष्पित हुए हैं।
प्राचीन भारतीय ज्योतिषके निम्न सिद्धान्त जैन-अजैनोंके परस्पर सहयोगसे विकसित हु होते हैं। इन सिद्धान्तोंमें पांचवां, सातवां, आठवां, नवम् दसवां, ग्यारहवां और बारहवें सिद्धान्तोंका मूलतः जैनाचायाँने निरूपण किया है ।
प्राचीन जैन ज्योतिष ग्रन्थोंमें षट्खण्डागमसूत्र एवं टीका में उपलब्ध फुटकर ज्योतिष चर्चा, सूर्यप्रज्ञति, ज्योतिषकरण्डक, चन्द्रप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, त्रैलोक्यप्रज्ञप्ति, अङ्गविज्जा, गणविजा, आदि ग्रन्थ प्रधान हैं। इनके तुलनात्मक विश्लेषणसे ये सिद्धान्त निकलते हैं
( १ ) प्रतिदिन सूर्यके भ्रमण मार्ग निरूपण सम्बन्धी सिद्धान्त - इसीका विकसित रूप दैनिक अहोरात्रवृत्तकी कल्पना है । ( २ ) दिनमान के विकासकी प्रणाली । ( ३ ) अयन सम्बन्धी प्रक्रियाका विकास – इसीका विकसित रूप देशान्तर, कालान्तर, भुजान्तर, चरान्तर एवं उदयान्तर सम्बन्धी सिद्धान्त हैं । (४) पत्र में विषुवानयन इसका विकसित रूप संक्रान्ति और क्रान्ति हैं । ( ५ ) संवत्सर - सम्बन्धी प्रक्रिया - इसका विकसित रूप सौरमास, चान्द्रमास, सावनमास एवं नाक्षत्रमास आदि हैं । ( ६ ) गणित प्रक्रिया द्वारा नक्षत्र लग्नानयनकी रीति- इसका विकसित रूप त्रिंशांश, नवमांश, द्वादशांश एवं होरादि हैं । ( 9 ) कालगणना प्रक्रिया - इसका विकसित रूप अंश, कला, विकला आदि क्षेत्रांश सम्बन्धी गणना एवं घटी पलादि सम्बन्धी कालगणना है । ( ८ ) ऋतुशेष प्रक्रिया - इसका विकसित रूप क्षयशेष, अधिमास, अधिशेष आदि हैं । ( ६ ) सूर्य और चन्द्रमण्डल के व्यास, परिधि और घनफल प्रक्रिया - इसका विकसित रूप समस्त ग्रह गणित है । ( १० ) छाया द्वारा समय निरूपण – इसका विकसित रूप इष्टकाल, भयात, भभो एवं सर्वभोग आदि हैं । ( ११ ) नक्षत्राकार एवं तारिकाओंके पुञ्जादिकी व्याख्या इसका विकसित रूप फलित ज्योतिषका वह अंग है जिसमें जातककी उत्पत्तिके नक्षत्र, चरण आदिके द्वारा फल बताया गया हो । ( १२ ) राहु और केतुकी व्यवस्था — इसका विकसित रूप सूर्य एवं चन्द्रग्रहण - सम्बन्धी सिद्धान्त हैं ।
जैन ज्योतिष ग्रन्थोंमें उल्लिखित ज्योतिष - मण्डल, गणित - फलित, आदि भेदोपभेद विषयक वैशिष्टयों का दिग्दर्शन मात्र करानेसे यह लेख पुस्तकका रूप धारण कर लेगा, जैसा कि जैन शास्त्र भण्डारोंमें उपलब्ध
१ चन्द्रप्रप्ति, पृ०२०४-२१० ।
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